पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५५८

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५२६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय एक शूरवीर जिस प्रकार हँसते हुए मृत्युका स्वागत करता है उसी प्रकार वह सावधान भी रहता है। शान्तिमय संग्राममें तो गफलतके लिए गुंजाइश ही नहीं है। जो नीति और सदाचारके विरुद्ध हैं, हम ऐसे अपराध करके न तो जेल जाना चाहते हैं और न फांसीपर ही लटकना चाहते हैं। हमें तो सरकारके अन्यायपूर्ण कानूनोंका सामना करते हुए बलिदान होना है। [गुजरातीसे] नवजीवन, १४-८-१९२१ २५८. स्वराज्यकी व्याख्या स्वराज्यकी व्याख्याओंके सम्बन्धमें मैं अपने मनमें तो विचार किया ही करता हूँ। अब उन्हें पाठकोंके सामने भी उपस्थित करता हूँ : (१) स्वराज्यका अर्थ है -स्वयं अपने ऊपर प्राप्त किया हुआ राज्य। इसे जो मनुष्य प्राप्त कर चुका है वह अपनी व्यक्तिगत प्रतिज्ञाका पालन कर चुका। (२) परन्तु हमने तो उसके कुछ लक्षणों, और स्वरूपकी कल्पना की है। अतएव स्वराज्यका अर्थ है देशके आयात और निर्यातपर, सेना और अदालतोंपर जनताका पूरा नियन्त्रण। दिसम्बरकी प्रतिज्ञाका यह अर्थ है। इसमें अंग्रेजी साम्राज्यके साथ सम्बन्ध रखने के लिए जगह है भी और नहीं भी है। यदि खिलाफत और पंजाब- काण्डका निपटारा न हो तो जगह नहीं है। (३) परन्तु व्यक्तिगत स्वराज्यका उपभोग तो साधु लोग आज भी करते होंगे, और हमारी पालियामेंट स्थापित हो जानेपर भी, सम्भव है लोगोंकी दृष्टिमें स्वराज्य न आये। इसलिए स्वराज्यका अर्थ है अन्न-वस्त्रकी बहुतायत । परन्तु वह इतनी होनी चाहिए कि किसीको भी उसके बिना भूखा और नंगा न रहना पड़े। (४) ऐसी स्थिति हो जानेपर भी एक जाति या एक श्रेणीके लोग दूसरोंको दबा सकते हैं। अतएव स्वराज्यका अर्थ है -ऐसी स्थिति जिसमें एक बालिका भी घोर अन्धकारमें निर्भयताके साथ घूम-फिर सके। (५) उपर्युक्त चार व्याख्याओंमें कितनी ही बातोंका समावेश दिखाई देगा। तथापि राष्ट्रीय स्वराज्यमें प्रत्येक अंग सजीव और उन्नत हो जाये और होना चाहिए तो उस दशामें स्वराज्यका अर्थ होगा अन्त्यजोंके प्रति अस्पृश्यताको भावनाका सर्वथा लोप । (६) ब्राह्मणों और अब्राह्मणोंके झगड़ेकी समाप्ति । (७) हिन्दू-मुसलमानोंके मनोमालिन्यका सर्वथा नाश। इसका अर्थ है कि हिन्दू मुसलमानोंकी भावनाओंका ध्यान रखें और इसके लिए जानतक दे दें। इसी तरह मुसलमान हिन्दुओंकी भावनाओंका ध्यान रखें। मुसलमान गो-ह्त्या करके हिन्दुओंका दिल न दुखायें; बल्कि स्वयं ही गो-वध बन्द कर दें और अपने हिन्दू भाईके चित्तको चोट न पहुँचने दें तथा हिन्दू, बिना किसी तरहका बदला चाहे, मसजिदोंके सामने बाजे न - । -- Gandhi Heritage Portal