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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिसाबसे पारसियोंकी दानशीलता सबसे बढ़कर है। हिन्दू कौमने बहुत दिया है, लेकिन हिन्दू कौम तो महासागर है और उसकी दानशीलता अपनी सामर्थ्यके अनुपातमें एक बिन्दुके समान है। मुसलमानोंने भी बहुत दान दिया है, ईसाइयोंकी दानशीलता भी प्रसिद्ध है तथापि पारसियोंकी दानशीलताकी थोड़ी-बहुत तुलना यहूदियोंकी उदारताके साथ ही की जा सकती है किन्तु उसमें भी पारसी आगे बढ़ जाते हैं। इसके अलावा पारसियोंकी दानशीलता सबके लिए है। ऐसी कौम अगर अपनी शक्तिका सदुपयोग करे तो दुनियाका अवश्य भला कर सकती है

लेकिन हिन्दुस्तानके साथ तो उनका खास सम्बन्ध है । हिन्दुस्तानने पारसियोंको उनके नाजुक समयमें प्रश्रय दिया था; इससे हिन्दने कुछ खोया नहीं है। उन्हें स्थान देकर हिन्दू कौम और हिन्दुस्तानने लाभ ही उठाया है। पारसियोंने भी लाभ उठाया है। भारतमें अपनेको भारतीय कहकर वे गर्वका अनुभव कर सकते हैं। पारसियोंने यहाँ आकर लिया और दिया है। मुझे उनसे बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं। मुझे दृढ़ विश्वास है कि वे नवयुगकी इस प्रवृत्तिमें अपनी उदारताके अनुपातमें ही चन्दा देंगे। मैं आपसे पैसेका अथवा बुद्धिका दान नहीं मांगता, मैं तो धार्मिक भावनाओंका दान माँगता हूँ। आप जिस पैगम्बरको मानते हैं उनके फरमानको याद करें। गुजराती और अंग्रेजी में आपके जितने धर्मग्रन्थ मिलते हैं, उन सबको मैंने पढ़ा है। और मुझे ऐसा लगा है मानो मैं वेद, उपनिषद् अथवा 'गीता' पढ़ रहा हूँ। कुछ-एक पारसियोंने जरतुश्तके कथनोंकी उपनिषदोंके साथ तुलना की है। इसलिए मुझे पक्का विश्वास है कि आप लोग धार्मिक चन्दा देंगे ।

जगत् कोई बुद्धिसे नहीं चलता बल्कि हृदयसे चलता है। इस जगत्‌में बुद्धि नहीं बल्कि आत्मा राज्य करेगी। आत्मा राज्य करेगी अर्थात् सदाचारका राज्य होगा। अभी सदाचार नहीं है, सो मैं नहीं कहता लेकिन यहाँ मैं सदाचारका विशेष अर्थोंमें प्रयोग कर रहा हूँ। सदाचार अर्थात् धर्माचार ।

ईरान पूर्वका देश है। आजकल पूर्व और पश्चिमके बीच द्वन्द्व चल रहा है। पश्चिमकी ओरसे हमपर एक भारी तूफान चढ़ आया है। या तो हम उसमें बह जायें अथवा दृढ़तासे उसका सामना करके उसे वापस ठेल दें। इस तूफानका नाम है जड़वाद अथवा पैसेको परमेश्वर माननेका वाद। अगर हम इसका विरोध नहीं करेंगे और इसकी नकल करनेमें फँस जायेंगे तो हम जड़वादी बन जायेंगे। पैसेको परमेश्वर मानेंगे तो नाशको प्राप्त होंगे।

आपकी इतनी स्तुति करनेके बाद मुझे लगता है कि आपसे चेतावनीके दो शब्द कहना मेरा फर्ज है। यह सम्भव है कि आपकी कौम पश्चिमी शिक्षासे लुब्ध होकर पश्चिमकी हवामें बह जाये। पारसियोंकी मातृभाषा गुजराती है। मुख्यतया उनकी आबादी गुजरातमें है इसलिए वे गुजराती ही हैं । तथापि एक गुजराती बहनने थोड़े दिन पूर्व मुझे एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने बताया कि हमारे पारसी भाई 'हमें गुजराती नहीं आती', यह कहनेमें बड़प्पन मानते हैं। हम गुजराती भूल गये हैं, ऐसा कहनेमें गर्वका अनुभव करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि अंग्रेजी तौर-तरीकोंके प्रति खास ध्यान रखनेमें अपना बहुत सारा समय खराब करते हैं। कुछ-एक पारसी बहनें