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भाषण:नवसारीमें

इस काममें मेरी बहुत मदद करती हैं। उनसे मैं गुजरातीमें लिखनेके लिए कहता हूँ तो वे शर्मिन्दा हो जाती हैं और कहती हैं कि हम गुजरातीमें नहीं लिख सकतीं। यह बात कौमकी दीन दशाको सूचित करती है।

अंग्रेजी भाषा आजकल फैशनमें आ गई है। मेरे मनमें उसके प्रति तिरस्कार--भाव नहीं है। लेकिन इस भाषाको सीखना जुदा बात है और इसे अपनी मातृभाषा मान बैठना जुदा बात है। राजनीतिक भाषा और व्यापारिक भाषाके अलावा अंग्रेजीका कोई दूसरा स्थान नहीं है। लेकिन पारसी अगर उसे मातृभाषा मान बैठें तो यह उनका और हिन्दुस्तानका दुर्भाग्य है। यदि आप उसे अपनायेंगे तो आप पश्चिमके गुलाम बन जायेंगे, आप अपने प्राचीन पैगम्बरकी चमत्कारपूर्ण शिक्षाको भूल जायेंगे ।

यूरोपकी जनता ईसाई कहलाती है लेकिन वह ईसाके आदेशको भूल गई है। भले ही वह 'बाइबिल' पढ़े, भले ही वह हिब्रूका अभ्यास करे लेकिन ईसाके आदेशानुसार वह आचरण नहीं करती। पश्चिमकी हवा ईसाके आदेशोंके विरुद्ध है। पश्चिम--की जनता ईसाको भूल गई है।

पारसी भाइयोंको मेरा यह सन्देश है, अगर यहाँ ज्यादा पारसी नहीं आये हैं तो जो लोग आये हैं उनसे मेरी प्रार्थना है, कि वे कल ही उन लोगोंके घरोंमें मेरे इस सन्देशको पहुँचायें। आप मुट्ठी-भर हैं, इसके लिए आपको दुःखी होनेकी जरूरत नहीं है। संख्या महत्त्वपूर्ण वस्तु नहीं है। गुण संख्या में नहीं बल्कि मनुष्यतामें है, बहादुरीमें है, हिम्मतमें है। अगर पचास हजार खोटे सिक्के हों तो उनकी कोई कीमत नहीं है । एक खरे सिक्केकी कीमत असंख्य खोटे सिक्कोंसे ज्यादा है। इसलिए पारसी अगर खरे हों तो वे दुनियाको अपना हिसाब दे सकते हैं। उनसे मैं आशा रखता हूँ कि वे खरे उतरेंगे ।

यदि आप पश्चिमी हवामें बह निकलें, भोग-विलासके पीछे पागल बन जायें,ऐश-आराममें निरत हो जायें, पैसेके पुजारी बन जायें तो इस तरह ईश्वरको भूल जायेंगे। यदि आप जरतुश्तके उपदेशको भूल जायेंगे तो जिस बात के लिए आप लोग प्रसिद्ध हैं उसे खो देंगे, मणिको खोकर पत्थर ले लेंगे ।

पारसियोंमें अनेक अरबपति हो गये हैं। इतना धन संचित करनेके बाद भी उन्होंने सादेपनको नहीं छोड़ा था, उन्होंने अपने दिलोंको साफ रखा था, वे ईश्वरको नहीं भूले थे। लेकिन आधुनिक युगके पारसी बहनों और भाइयोंके सम्बन्धमें मुझे कुछ शंका होती है। मुझे भय बना रहता है कि सम्भवतः वे यूरोपकी मोहिनी छविसे लुब्ध होकर वे अपनी प्राचीन विरासतको खो बैठेंगे।

मैंने बहुत-कुछ कह दिया है। अभी अगर आप असहयोगके पूरे कार्यक्रममें शामिल नहीं होते तो कोई बात नहीं लेकिन एक बातके सम्बन्ध में मैं आपसे खास मदद चाहता हूँ। अगर आप शराबखानेसे पैसा कमानेका विचार छोड़ दें तो आपका बड़ा उपकार होगा। अकेले पारसी ही शराबखाने चलाते हों सो बात नहीं । हिन्दू भी चलाते हैं,अनाविल ब्राह्मण भी चलाते हैं। मुसलमान भी इसमें पड़े हुए हैं। पंजाबमें बहादुर गुरु गोविन्दसिंहके अनुयायी सिख लोगोंके हाथमें भी शराबकी भट्टियाँ हैं। उन सबसे मैं प्रार्थना कर रहा हूँ। लेकिन पारसी लोग एक छोटी कौम होनेके कारण इस कामको