पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५७६

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय तथा उन मजदूरोंसे जो बन्दरगाहोंपर काम करते हैं, कहें कि वे विदेशी जहाजोंपर माल न चढ़ायें। मैं तो समझता हूँ कि ये दोनों सुझाव अस्वाभाविक है और उनको कार्यरूपमें परिणत करना भी असम्भव है। जरा देरके लिए मान लीजिए कि हम एक क्षणमें राली ब्रदर्सका कारोबार चौपट कर सकते हैं, पर इसका असर यूनानपर क्या पड़ सकता है ? राली ब्रदर्स सारा या ज्यादातर माल यूनान नहीं भेजते । उनका व्यापार तो सारी दुनियामें फैला हुआ है। अतएव स्वदेशीका काम उठानेकी अपेक्षा उनके व्यापारके साथ झगड़ना ज्यादा कठिन होगा। ऐसा करना गलत है इस बातको जाने दें तो भी इस तरहके काम करके हम अपनी हँसी करायेंगे, जो ठीक ही होगी। विदेश जानेवाले जहाजोंपर काम करनेवाले मजदूरोंके काममें बाधा डालना भी उतना ही असंगत है। यदि जनतापर हमारा इतना पूर्ण नियन्त्रण होता तो हम इस समरमें अबतक कभीके जीत गये होते। मालका बाहर जाना बन्द कर देने के लिए हमें आज काम करनेवाले सारे मजदूरोंका काम हमेशाके लिए या एक अनिश्चित समयतक बन्द रखना होगा। यही नहीं बल्कि ऐसा करते समय यह पहले ही मान लिया जाता है कि जो मजदूर काम बन्द कर देंगे उनकी जगह दूसरे मजदूरोंको कामपर न आने देनेकी सामर्थ्य हममें है। मेरा तो खयाल है कि अभी हम इतने संगठित नहीं है। ऐसी कोशिशमें नाकामयाब होने के सिवा और कुछ हासिल नहीं होगा। और भी बुरा नतीजा न निकले तो गनीमत समझिए। इसका एक ही सम्भव उपाय है कि हम तुरन्त सविनय अवज्ञा शुरू कर दें। परन्तु मुझे इतमीनान हो गया है कि देश अभी बड़े पैमानेपर इसे करनेके लिए तैयार नहीं है। पर यदि देश इस बातको दिखा दे कि उसमें संगठनकी इतनी काफी क्षमता है, उसके पास इतने विभिन्न साधन हैं और उसमें इतनी नियमबद्धता है जितनी कि स्वदेशी जैसे सर्वथा व्यवहार्य कार्यको पूर्णत: सफल बनानेके लिए आवश्यक है, तो कानूनका सविनय भंग बिना जोखिमके सफलतापूर्वक शुरू किया जा सकता है। आइए, हम यह आशा और प्रभुसे प्रार्थना करें कि देश ऐसा कर दिखाये। [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, १८-८-१९२१ Gandhi Heritage Porta