पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५७९

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मेरी भूल ५४७ जिसे दफा १४४ के अन्तर्गत नोटिस दिया गया था, राजभक्तिका शपथ-पत्र दाखिल न करनेपर मुअत्तिल कर दिया था। वह जबतक आवश्यक शपथ-पत्र दाखिल न करे तबतक के लिए १० मईको मुअत्तिल किया गया । यह बात सच है कि पुत्र पिताके साथ रहता था। फल यह हुआ कि मुन्सरिमने ६ जूनको अपने बेटेकी ओरसे अमन सभामें शामिल होनेकी अर्जी पेश कर दी और अपने बेटेकी इच्छानुसार काम करनेकी स्वतन्त्रताको बेचकर नौकरीपर अपनी बहाली हासिल कर ली। यदि हम पर्देके पीछे झाँककर देख सकते तो सम्भवतः हमें बेचारे मुन्सरिमकी मुअत्तिलीके समर्थक गुप्त खरीते मिल जाते । खैर, जो भी हो यह दुःखजनक तथ्य है कि सरकारी नौकरोंपर यह दबाव डाला जा रहा है कि वे अपने लड़कोंको असहयोग आन्दोलनसे हटा लें। मुझे कोई शक नहीं कि तीन साल पहले राजा साहब स्वयं सरकारी नौकरों और उनके परिवारोंके ऐसे भयंकर पतनके विरुद्ध मुझसे कहीं अधिक सशक्त रूपसे लिखते और भाषण देते थे। मंत्रिगण बेईमान लोगोंके हाथों कठपुतली बनाये जा रहे हैं इस सत्यकी ओर लोगोंका ध्यान आकृष्ट करने से भी अधिक मतलबकी बात यह है कि असहयोगियों- को सरकारके यहाँ उल्लिखित अवैध और अनैतिक कार्योंसे हतोत्साह न होना चाहिए प्रत्युत यह समझ लेना चाहिए कि हमें ऐसे और इससे भी कड़े दमनकी आशा रखने और उसे यह मानकर कि विश्वके सब सुधारकोंके भाग्यमें यही बदा है, प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करने की जरूरत है। आततायी सचमुच यही विश्वास रखते हैं कि हम गलती कर रहे हैं और देशको हानि पहुँचा रहे है और जिस आन्दोलनके हम समर्थक हैं वह कुचला जाता हो तो उसको कुचलने में कैसे साधन प्रयुक्त किये जाते हैं यह बात कोई महत्त्व नहीं रखती। अतः हमें दमनको विजयकी प्रस्तावना समझना चाहिए, और इस कारण उसका स्वागत करना चाहिए और उससे अपने निश्चयको दृढ़तर बनाना चाहिए। [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, १८-८-१९२१ २७१. मेरी भूल परमात्मा ही जानता है कि मैंने कितनी बार भूलें की हैं। जो लोग यह समझते हैं कि मुझसे भूल नहीं होती वे मुझे नहीं पहचानते। मेरे निजी अनुभवोंने तो मुझे नम्रतापूर्वक इस बातको जानना और मानना ही सिखाया है कि भूलोंसे संग्राम करना ही जीवन है। १९१९में जब मैने बड़ी प्रसन्नतासे सत्याग्रह आरम्भ किया, मैंने देखा कि मैंने बड़ी भारी गलती की है। नडियादमें ज्यों ही मैंने दूरदेशीकी कमी देखी त्यों ही कहा कि यह तो 'हिमालय जैसी गलत-अन्दाजी' है। इसमें कोई अत्युक्ति नहीं थी। और यदि इससे भारतकी नैतिक उन्नतिकी क्षति नहीं हुई है तो इसका कारण यह है कि भूलको साफ और पूरे तौरपर कबूल कर लेनेकी बुद्धि मुझमें थी। अब अगले कुछ सप्ताहोंमें एकाग्न होकर “स्वदेशी" का आन्दोलन करते समय Gandhi Heritage Portal