पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५८०

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५४८ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय मैं एक और भूल स्वीकार कर लेना चाहता हूँ। अध्यापकों और विद्यार्थियों के साथ बातचीतमें तो मैंने वह भूल पहले ही कबूल कर ली है। परन्तु अपने चित्तकी शान्ति और साथ ही वर्तमान स्वदेशी-प्रचारके कार्य के लिए उसे सब लोगोंके सामने अधिक निश्चित रूपसे स्वीकार कर लेना आवश्यक है। इन नौ महीनोंके अनुभवने यह बात पक्की कर दी है कि सरकारी शिक्षा-संस्थाओंका बहिष्कार करना ठीक ही था। परन्तु उस समय विद्यार्थियोंको जो मार्ग बताया गया उसमें मेरी कमजोरी थी। इसे मैं कमजोरी इसलिए कहता हूँ कि मुझे अपनी बातपर दूसरोंको विश्वास करा देनेकी अपनी क्षमतापर विश्वास नहीं था। मैने इसके नतीजेको भगवान्पर छोड़नेकी बजाय उसकी चिन्ता खुद ही की। इससे मुझमें दुर्बलता आ गई और मैंने लड़कोंसे कहा, मदरसे छोड़ देनेपर, चाहे गलियोंमें घूमते फिरो, चाहे वैसी ही पढ़ाई पढ़ो या, सबसे बेहतर, स्वराज्य स्थापित होनेतक हाथ-कताईके काममें लग जाओ। परन्तु नागपुर कांग्रेसके प्रस्तावके बाद ही मैंने जान लिया कि लड़कोंको कई मार्ग बताकर मैंने गलती की है। परन्तु अनर्थ तो हो ही चुका था। वह पिछले सितम्बरमें शुरू हुआ और जनवरीसे मैं उसे सुधारने लगा। परन्तु मरम्मत तो हमेशा पैबन्दका काम देती है। और इसीलिए अधिकतर असहयोगी विद्यालयोंमें चरखा कातना एक अनावश्यक कार्य या कालक्षेपका साधन हो गया है। मुझे साहस करके सारी सच्ची बात कहनी थी और बताना था कि हाथसे कातना और बुनना शिक्षा-संस्थाओंके बहिष्कारके प्रस्तावका अभिन्न अंग है। हाँ, यह सच है कि इससे शायद कम लड़कोंने स्कूल छोड़े होते। परन्तु उन्होंने उन हजारों लड़कोंकी बनिस्बत, जिन्होंने इस मार्गके विषयमें निश्चित कल्पना किये बिना ही स्कूल और कालेज छोड़ दिये हैं, बहुत ज्यादा काम किया होता । अबतक तो वे हाथ-कताई और हाथ-बुनाईमें प्रवीण हो गये होते और हमारा स्वदेशीका काम ज्यादा आसान हो गया होता। मैं जानता हूँ कि असहयोगी विद्यालयोंके अध्यापक और विद्यार्थी अपनी पूरी शक्ति इसमें लगा रहे हैं। परन्तु यह मानना होगा कि वे उसे दिक्कतके साथ कर रहे हैं। वे सामान्य रूपसे स्वदेशी या हाथ-कताईके विषयमें कोई विश्वास लेकर नहीं आये हैं। उन्होंने इस प्रश्नपर सिर्फ शिक्षाकी दृष्टिसे ही विचार किया है और ऐसा करनेका उन्हें अधिकार भी था। उनके लिए तो बस इतना ही काफी था कि वे सरकारी शिक्षालयोंसे निकल आयें और इस तरह उन्होंने सरकारका मान घटा दिया। अब यह कहना उनको अखरेगा कि तुम्हारा बहिष्कार पूर्ण तभी हो सकता है जब तुम सूत कातो और खादी तैयार करो, और इस नई (स्वराजी) शिक्षा-विधिकी आरम्भिक पढ़ाई तो यही है कि संग्रामके समयमें हाथ-कताईका तथा कपड़ा तैयार करनेकी दूसरी क्रियाओंका ज्ञान प्राप्त किया जाये। परन्तु अब जब कि गलती हो चुकी है, मुझे उसकी सजा भोगनी लाजिम है; और वह इस रूपमें कि मैं धीरजके साथ शंकालुओंको यह विश्वास करानेका प्रयत्न करूँ कि यदि मैने हाथ-कताईको भी असहयोगके शिक्षा-सम्बन्धी कार्यक्रमका एक आवश्यक अंग बनानेपर जोर दिया होता तो अच्छा होता। अतएव मैं उन सब लोगोंका, जिनका मत मुझसे मिलता है, आह्वान करता हूँ कि वे अब इस भूलको सुधारने में जल्दी करें और जिन राष्ट्रीय शिक्षा-संस्थाओंपर उनका प्रभाव है उनमें सूत और Gandhi Heritage Portal