पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५८१

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५५८ सम्पूर्ण गाधी वाङ्मय इन लोगोको कामपर हाथ बैठानेमे कुछ समय लगा, और अब १० कतैये है जो महीन ऊन कातते है । उनको भी फी पौड ६ आनेके हिसाबसे मजदूरी दी जाती है। २ रुपये प्रति २ पौडके हिसाबसे ३१ रुपयेकी ऊन खरीदी गयी। यद्यपि रुई तैयार हो गई थी तो भी ऊनकी कताई जारी रखी गई । इस कामके लिए एक अलग विभाग खोल दिया गया। क्योकि धांगर लोगोने यह काम शीघ्र ही सीख लिया था। उनकी सफाईकी कुल कार्रवाई घॉगर जातिकी स्त्रियो द्वारा ही की जा रही है जिससे उन्हे फी पौड १ बाना और मिल जाया करता है। जनके वर्गीकरणकी ओर विशेष रूपसे ध्यान दिया जाता है। ऊनकी कताई करनेवाले अधिकाश लोग अपने ही चरखे काममे लाते है। इनमेसे कुछ कतैये महीन ऊन कातने के लिए वर्तमान चरखोकी अपेक्षा अधिक अच्छे चरखे मांग रहे है। धाँगर बुनकर यहीके है। इसलिए यहाँके कते इस महीन ऊनसे पढरपुर और दावनगिरि नमूनेके कम्बल बनाये जा रहे है। बुनकरोको बुनाईके और नमूने भी सुझाये गये है। धॉगर कुछ जिद्दी किस्मके लोग होते है इसलिए वे नये और उन्नत तरीकोको शीघ्र नहीं अपनाते । परन्तु इस कामके चलते वे नये नमूनेके कम्बल बनाने लगे है और यह उनके अपने पेशेमे भी स्थायी रूपसे सहायक सिद्ध होगा। अब उन्हे ज्यादा चौडे तथा उन्नत ढगके करघोकी जरूरत है। वे ऊनको रँगने की विधि भी जानना चाहते है। पूरे दिन काम करनेवाले एक होशियार बुनकरको लगानेकी कोशिश की जा रही है। यह वुनकर बुनाईको ज्यादा अच्छी विधि सिखायेगा। दो कम्बल तैयार किये गये और उनको लागत दामपर बेच दिया गया। उनमे से एकका दाम २० ५-१३-६ था और दूसरेका २० ६-६ था और अधिक कम्बलोकी मांग आई है परन्तु इस कामको चालू रखने के लिए कुछ रकमकी जरूरत पड़ेगी। इतने लोगोको कामपर लगाये रखना अकाल-पीडितोकी सहायताका एक आदर्श तरीका तो है ही, इसके अलावा ग्रामीण उद्योगोको बढावा देनेका साधन भी है। साथ ही बार-बार अकाल पडनेसे जो पस्तहिम्मती आ गई है वह भी इससे दूर होगी। लगभग एक महीनेमे इतना काम हो पाया है। अव हमे एक उन्नत ढगके करघेकी, एक अच्छे शिक्षककी, ऊनकी बुनाई करनेके लिए एक अच्छे करघेकी और अधिक चरखोकी (जिनकी मांग पडोसके गाँववाले कर रहे है) तथा अन्य बहुतसी चीजोकी जरूरत है। काम तेजीसे चल रहा है और आशा की जाती है कि धनके अभावके कारण काम रुके ऐसी नौवत न आने पायेगी। [अग्रेजीसे] यंग इंडिया, ११-५-१९२१