पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५८४

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परिशिष्ट को एक विज्ञप्तिका प्रकाशित किया जाना आवश्यक हो जायेगा कि इस सम्बन्धमे सरकारने क्या रुख अख्तियार किया है। परन्तु इस सब कार्यमे सौदेवाजीकी भावना नही है। श्री गाधीने यहाँतक कहा कि मुकदमा चलाया जाये चाहे न चलाया जाये, मेरा यह कर्तव्य हो जायेगा कि मैं [इस वक्तव्य ] के कुछ अश उन्हे दिखाऊँ और उसके उपरान्त उन्हीकी आबरू तथा उद्देश्यकी खातिर उन दोनोसे यह कहूँ कि आप लोग सार्वजनिक रूपसे खेद प्रकट कीजिए। वार्तालापके पूरे दौर, वाइसराय महोदय तथा श्री गाधी, दोनो ही के विलोमै यह इच्छा काम कर रही थी कि मुकदमा चलाये जानेपर गड़बड़ न मच पाये और उनकी यह भी ख्वाहिश थी कि भविष्यमे हिंसाको प्रोत्साहन देनेवाले भाषण न दिये जायें। वाइसरायने श्री गाधीको सूचित किया कि अगर वह वक्तव्य यथाशीघ्र प्रकाशित नही कर दिया जायेगा तो मै मुकदमा चलाया जाना रुकवा न सकूँगा। इन भाषणोकी बहुत चर्चा भारतमै ही नहीं बल्कि इग्लैडमे भी हुई थी। श्री गांधीने वक्तव्यको अविलम्ब प्रकाशित करना स्वीकार कर लिया। इसके बाद श्री गांधी शिमलासे रवाना हो गये, और उन्होंने कुछ दिनोके अन्दर बाइसरायको इस आशयका तार भेजा कि श्री शौकत अली और श्री मुहम्मद अलीने वक्तव्यपर हस्ताक्षर कर दिये है, और उसमे बहुत मामूलीसा रद्दोबदल किया गया है। वह समाचारपत्रोको प्रकाशनार्थ भेज दिया गया है। परिवर्तन निम्नलिखित था: श्री गावी द्वारा तैयार किये गये मसविदेमे जहाँ ये शब्द लिखे है "हम कहना चाहते है कि हमारा मशा हिंसाको प्रोत्साहित करना कदापि न था, परन्तु हम मानते है कि हमारे भाषणोमे कुछ वाक्य ऐसे जरूर है जिनका वही अर्थ निकल सकता है जो लगाया गया है", श्री शौकत अली तथा श्री मुहम्मद अलीने ये शब्द लिख दिये : 'हम कहना चाहते है कि हमारा मशा हिंसाको उकसानेका कदापि न था, और हमने कभी यह सोचा भी न था कि हमारे भाषणोमे कोई वाक्य ऐसा भी हो सकता है जिनसे वह अर्थ निकलता हो जो किया गया है परन्तु हम अपने मित्रकी दलीलके जोरको और उनके द्वारा लगाये गये अर्थको तसलीम करते है।" वक्तव्यके प्रकाशित हो जानेके पश्चात् सरकारी विज्ञप्ति प्रकाशित की गई। उस विज्ञप्तिमे क्या-क्या शर्ते होगी इसका निर्णय ठीक-ठीक तबतक न हो पाया जबतक वह प्रकाशनकी तिथिके समीप न पहुंच गई। श्री गाधी उसे नहीं देख पाये; हां, यह जरूर था कि उसका सार जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है श्री गाधीको बतला दिया गया था। वाइसराय और श्री गाधीके बीच हुई मुलाकातोका मुख्य भाग उस वार्ता- लापमै बीता जो भारतमें फैले असन्तोषसे सम्बन्धित था और जिसमे पजावके उपद्रव, खिलाफत आन्दोलन, सेवरकी सन्धि तथा जनताकी आम हालत-ये चीजे शामिल थी। श्री गांधीने वाइसरायके सम्मुख स्वराज्यकी कोई योजना पेश नही की थी और न उक्त मुलाकातोमे ऐसी किसी योजनापर बातचीत ही हुई थी। [अग्नेजीसे] यंग इंडिया, ४-८-१९२१ । -