पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५८५

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परिशिष्ट ४ रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा असहयोगको आलोचना २ मार्च, - - १९२१ (१) दुबले-पतले शरीरवाले तथा भौतिक साधनोसे विहीन महात्मा गाधीने दीन-दुर्बल लोगोको महाशक्तिका-जो भारतके अपमानित तथा पद-दलित और निर्धन व्यक्तियोके हृदयोमे बैठी इन्तजार कर रही थी~आह्वान किया है। यह इस देशके लिए उपयुक्त ही है। भारतने अपने भाग्यके साथीके रूपमे नारायणी सेनाको नहीं बल्कि नारायणको शरीर-बलको नही, आत्म-बलको चुना है। भारत मानव-समाजके इतिहासको शरीर- बलके युद्धरूपी दलदलसे ऊँचा उठाकर नैतिक स्तरपर लानेको कटिवद्ध हुआ है। स्वराज्य क्या है? वह माया है। वह उस कोहरेके समान है जो शाश्वत या अवि- नाशीके प्रखर तेजपर किसी प्रकारका धब्बा डाले विना विलीन हो जायेगा। हम लोग पश्चिमसे सीखे हुए कुछ वाक्योकी दुहाई देकर अपनेको कितना ही धोखा दे ले, लेकिन सचाई यह है कि स्वराज्य हमारा ध्येय नही है। हमारा संघर्ष आध्यात्मिक संघर्ष है। यह मानवताके लिए होनेवाला संघर्ष है। हमे मानवको राष्ट्र, देश, स्वतन्त्रता आदिके उस जटिल जालसे, जिसे उसके राष्ट्रीय अहम्ने अपने चारो ओर चुन लिया है, मुक्त करना है। तितलीको यह समझाना है कि रेशमके कोयमे दबे पड़े रहनेकी अपेक्षा आकाशमे विचरनेकी स्वतन्त्रता अधिक मूल्यवान है। यदि हम, शक्तिशाली व्यक्ति या सस्थाको, शस्त्रसज्जित संगठन या धनाढ्य-वर्गको ललकार सकते है या उसके आदेशोंका तिरस्कार करनेका साहस रखते है और इस प्रकार संसारके सामने अनश्वर आत्माको शक्तिका परिचय प्रस्तुत कर सकते है तो पशुवलका दिवाला ही निकल जायेगा। ऐसी स्थिति उत्पन्न होनेपर मानव स्वराज्य पा जायेगा। पूर्वके रहने- घाले हम नगे-भूखे और दरिद्र लोगोको समस्त मानव-समाजके लिए स्वतन्त्रता प्राप्त करनी है। 'राष्ट्र' जैसा शब्द हमारी भाषामे है ही नही। जव हम इस शब्दको अन्य लोगोसे उधार ले आते है तव हम देखते है कि वह हमारे लिए ठीक नही बैठता। इसका कारण यह है कि हमे नारायणका पल्ला पकड़ना है। हमारी विजय हमे विजयके अतिरिक्त - ईश्वरीय जगत्की विजय-कुछ नहीं दे सकती। मैंने पश्चिमका अव- लोकन किया है, मुझे अपावन भोजोको, जिनमे वह प्रतिक्षण मस्त रहता है, लालसा नहीं है। पश्चिम तो अपनी इस प्रवृत्तिके कारण दिनपर-दिन मोटा-ताजा, सुर्ख और भयावह रूपसे मदमस्त और वासना-प्रिय होता जा रहा है। मशालोकी रोशनीमें आधी राततक चालू रखी जानेवाली विलासितापूर्ण और विवेकहीन रंगरलियोकी चहल- पहल हमें नहीं चाहिए। हमारे लिए तो उषाकालके मन्द और मनोहर प्रकाशकी सजगता ही ठीक है। -