पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५८६

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-- ५५४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय वह तिलक महाराजका प्रशंसक है और तिलक स्वराज्य-कोषमें अकसर मुक्तहस्तसे चन्दा दिया करता है। परन्तु क्या वह 'असहयोगी' है ? क्या आपकी सूचीमें उसका नाम है? अगर उसमें और कोई कमी न हो तो क्या वह आपके आश्रममें भरती हो सकता है ? तीसरी कठिनाई यह है कि आपके कथनानुसार इस शैतानियतसे भरी हुई सरकारका सदस्य बनना पापमय है, परन्तु फिर भी इस सरकारकी नौकरीमें अथवा सरकारी संस्थाओंमें अपने इतने अधिक देशवासियोंके बने रहनेको आप बरदाश्त करते हैं। आप उन्हें इस समय अपने दलमें शामिल होने का निमन्त्रण नहीं दे रहे हैं। क्या यह उचित है ? यदि इस सरकारकी नौकरी करना सामाजिक अथवा धार्मिक दृष्टिसे अपराध है मेरे खयालसे ऐसा ही है --तो आप उन्हें वहाँ क्यों रहने दे रहे हैं ? क्या धर्म, आत्मशुद्धि और स्वावलम्बनके क्षेत्रमें सामयिक लाभ उठानेकी नीतिकी गुंजाइश हुआ करती है? अन्तमें आपसे एक बात और पूछना चाहता हूँ : “एक सालके अन्दर ही स्वराज्य प्राप्त करने " से आपका क्या मतलब है? क्या उस वाक्यका मतलब यह है कि कांग्रेसके आगामी अधिवेशनके अवसरपर देश ब्रिटिश साम्राज्यसे मुक्त और अलग हो जानेकी घोषणा कर देगा? अगर ऐसा नहीं हो तो क्या फकत आजादीका अहसास, स्वदेशीको अपनाना और अदालतों तथा स्कूलोंका अधूरा बहिष्कार इन तीन बातोंसे यही समझा जायेगा कि भारतमें स्वराज्य स्थापित हो गया? और अगर खुदा न खास्ता हमारा बहिष्कार आन्दोलन असफल रहा तो क्या उसका मतलब यह होगा कि जिनसे एक सालके वास्ते वकालत करना और स्कूलोंमें पढ़ना-लिखना छोड़ देनेको कहा गया है वे उन निषिद्ध मानी जानेवाली संस्थाओं में फिर जाने लगेंगे? आपका, अहफद हुसैन [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, ४-५-१९२१ Gandhi Heritage Portal