पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

कुछ शंकाएँ

अहिंसा के तत्त्वको पहचाना ही नहीं है । श्री नरिमन तो यह सुझाव देते जान पड़ते हैं कि असहयोगके उपदेशसे वैर बढ़ता है। हड़तालसे लोगोंको नुकसान पहुँचता है । ये सब हिंसाके ही रूप हैं । अहिंसाका मुद्दा यह है कि क्रूर व्यक्तिकी क्रूरताको जानते हुए भी उसके प्रति द्वेष न किया जाये। पंजाबके अत्याचार अथवा खिलाफतके सम्बन्धमें किये गये विश्वासघातको जनतासे छिपाकर जनताको द्वेषरहित नहीं बनाया जा सकता । लोगोंको हत्याकाण्डसे भिज्ञ रखते हुए भी उन्हें शान्त रखना मेरा फर्ज है। हड़ताल आदिसे कुछ-एक लोगोंको दुःख पहुँचे तो उसमें हिंसा नहीं है। अपना कर्त्तव्य करनेसे अगर दूसरोंको दुःख हो तो उसके लिए कर्त्तव्य करनेवाला उत्तरदायी नहीं है। अफीम की दुकानपर न जानेसे अफीम विक्रेताको जो नुकसान होता है उसका दोष मुझे नहीं लगता । उससे होनेवाला दुःख तो अफीम विक्रेताके लिए भी कल्याणकारक है। असहयोगका अर्थ यह है कि पापीको पाप-कर्ममें मदद न दें । और जबतक वह पश्चात्ताप न करे तबतक उसकी मदद और दान ग्रहण न करें ।

आठवीं शंकाका उत्तर

भाई नरिमन ऐसा मानते जान पड़ते हैं कि अफीम आदिका बहिष्कार सफल नहीं हो रहा है। सब व्यसनोंको छुड़वानेकी कोशिश हो रही है । चूँकि लोग शराब-की दुकानोंपर जानेके लिए ललचाते हैं इसलिए वहाँपर धरना दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त कितने ही पारसी भाई शराबका व्यापार करते हैं, इसलिए मैं उनसे प्रार्थना करता हूँ कि वे इस व्यापारको छोड़ दें। अफीमके व्यापारियोंसे भी मैं प्रार्थना कर रहा हूँ। लेकिन मेरा तर्क यह है कि अगर अफीमका व्यसन नहीं छूटता तो भी शराबके व्यसनको छोड़ा जा सकता है ।

भाई नरिमनने बहुतसे मुद्दे उठाये हैं। मेरी यह प्रार्थना है कि भले वे खिलाफत,पंजाब आदिके सम्बन्धमें मेरा विरोध करें लेकिन अगर स्वतन्त्र रूपसे मद्यनिषेधके बारेमें विचार करने पर उन्हें निषेध करना उचित लगे तो इस कार्यमें मदद करनेके लिए उन्हें पारसियोंको प्रेरित करना चाहिए। आत्मशुद्धिकी इस लड़ाईमें जो जिस रूपमें भाग लेना चाहें उस रूपमें भाग लेकर भी अगर वे हमारी मदद करें तो उससे राष्ट्रको उतना लाभ अवश्य होगा ।

मैं मद्यनिषेध कर रहा हूँ। गोवध-निषेधके लिए मैं क्या कर रहा हूँ और उसमें मैंने कितना समय दिया है -- भाई नरिमनका यह अन्तिम तीर है। और यह मर्म-स्थलपर जाकर लगा है। गोवधसे मेरे-जैसे कट्टर हिन्दूको कितना दर्द पहुँचता है,उसका भाई नरिमन भला क्या अन्दाज लगा सकते हैं ? जबतक गोवध होता रहता है तबतक मुझे ऐसा लगता रहता है मानो मेरा ही वध किया जा रहा है। गायको छुड़वानेका मैं निरन्तर प्रयत्न करता रहता हूँ । यद्यपि मैंने इस समय इस्लामकी रक्षा करनेकी खातिर अपने प्राणोंको उत्सर्ग कर दिया है सो गायको बचानेके विचारसे ही किया है। मैं मुसलमानोंके साथ व्यापार नहीं करना चाहता। इससे मैं गोवधकी बात नहीं करता। मेरी प्रार्थना तो ईश्वरके प्रति है। मेरे हृदयकी बात तो वही जानता है। सज्जनताका बदला ईश्वर सज्जनतासे ही देता है । इस्लामकी रक्षा करते हुए

२०-३