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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं गायकी रक्षा अवश्यमेव कर लूंगा, ऐसी मान्यतासे मैं खिलाफतके लिए प्राण उत्सर्ग करूँ तो मेरा विश्वास है कि उसमें गोरक्षाकी बात आ ही जाती है। जबतक में मुसलमानोंका प्रेम प्राप्त नहीं कर लेता तबतक अंग्रेजोंके हाथोंसे गायको नहीं बचा सकता। मैं भाई नरिमनसे यह अनुरोध करता हूँ कि वे इस बातको अच्छी तरह समझ लें कि मेरे सब प्रयत्न गायको बचाने के लिए ही हैं। जो गायको बचानेके लिए प्राणोंकी बलि देनेके लिए तैयार नहीं है, वह सच्चे अर्थोंमें हिन्दू नहीं है। जबतक हिन्दू, मुसलमान और ईसाइयोंकी ओरसे शुद्ध रूपसे हिन्दुस्तानकी रक्षा नहीं की जाती तबतक हिन्दू नाममात्रके हिन्दू हैं। मेरा अहिंसा धर्म मुझे यही सिखाता है कि गायको बचानेकी खातिर मुसलमान अथवा ईसाईकी हत्या न करूँ बल्कि उसकी रक्षा-के लिए मैं स्वयं अपनी बलि दे दूँ। ईश्वरके दरबारमें शुद्ध बलिदान ही काम आता है। मैं शुद्ध बननेका प्रयत्न कर रहा हूँ। अन्य हिन्दुओं और हिन्दुस्तानकी सब सन्तानों-को मैं इस शुद्धिमें शामिल होने के लिए कह रहा हूँ। भाई नरिमनको भी गोवधसे दुःख होता है। उन्हें मैं इस आत्मशुद्धिमें शामिल होने के लिए निमन्त्रित करता हूँ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २४-४-१९२१

१९. गुजरातके अनुभव

मुझे इतने ज्यादा अनुभव होते रहते हैं कि उन सबको लिपिबद्ध करने का समय ही नहीं मिल पाता। इससे मुझे अनेक अनुभवोंको छोड़ देना पड़ता है। कार्य करने-वालोंका यह लोभ कि थोड़े ही समयमें मेरा जितना लाभ उठाया जा सकता है,उतना उठा लें, मुझे शान्तिसे रहने नहीं देता और न ही मैं एकान्तमें कुछ लिख पाता हूँ। उनके लोभकी कोई हद नहीं है और मुझे भी सेवाका लोभ बना रहता है । जितना बन सके उतना कर लिया जाये, जितना समझाया जा सके उतना समझा दूं; इसी कारण मैं अपने समस्त अनुभवोंको पाठकोंके सामने प्रस्तुत नहीं कर पाता।

आनन्द, रास, बोरसद, हालोल, कालोल, बेजलपुर, गोधरा, सूरत, ओरपाड और रादेंर--अबतक मैं इतने स्थानोंपर हो आया हूँ । प्रत्येक स्थानपर लोगोंके उत्साह-की सीमा नहीं थी। सभी स्थानोंपर स्त्री-पुरुष बड़ी संख्यामें उपस्थित हुए। सभी जगह मैंने चरखेकी प्रवृत्तिको जोरोंपर पाया और लगभग प्रत्येक स्थानपर लोगोंने तिलक स्वराज्य-कोषमें चन्दा दिया ।


एक विधवाका दान

आनन्दमें एक विधवा बहनके पास पच्चीस-एक तोले सोनेकी छड़ थी, उसने वही दानमें दे दी । यह दान एक विधवा बहनके लिए बहुत ज्यादा है। मैंने उस महिलाका नाम पूछा। उसने नाम बतानेसे इनकार किया। धर्मके लिए पैसा देनेमें नाम-धाम कैसा ? ज्यादा पूछनेकी मेरी हिम्मत न हुई ।