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२१. गुजरातियोंसे

[ २५ अप्रैल, १९२१ ]
 

मैं महान् सिन्धु नदीके तटपर, सुबह-सुबह एक वृक्षके तले एकान्तमें बैठा हुआ हूँ । वृक्षोंपर पक्षी गुंजन कर रहे हैं। दो-तीन स्वयंसेवकोंके अतिरिक्त और कोई नजर नहीं आता । एक ओर दूरसे कोटरीका पुल दिखाई देता है तो दूसरी ओर पानीके अलावा और कुछ दिखाई नहीं पड़ता। सामनेके तटपर मैं वृक्ष और कुछ-एक घर देख पा रहा हूँ । नदीमें दो-चार छोटी-छोटी नावें बिना किसी कामके खड़ी हुई हैं। मन्द समीर बह रहा है और समीर बहनेके कारण नदीका जल अठखेलियाँ करता हुआ मन्द मधुर स्वरमें गा रहा है। जल और रेत सूर्यकी किरणोंसे मिलकर स्वर्ण समान दीप्त हो रहे हैं। सिन्धी भाइयोंने मुझे अपने प्रेमपाशमें बाँध रखा है।

आज सोमवारका दिन है इसलिए मेरे लिए एकान्त और शीतल स्थान ढूंढकर उन्होंने मुझे यहाँ ला बैठाया है। जब कोई मुझसे यह कहता है कि मैंने बहुत त्याग किया है तब मुझे हँसी आती है। जिस सुख, शान्ति और आनन्दका मैं अनुभव कर रहा हूँ वे सब कदाचित् ही किसी चक्रवर्तीको मिलते हों। मेरी मान्यता है कि चक्र-वर्तीको ऐसी शान्ति मिलनी असम्भव है। उसे तो राजपाटका बोझ ही कुचल डालता है। मुझे इस बातका पूरा-पूरा अनुभव हो रहा है कि मन ही बन्धन और मोक्षका कारण है।

गुजरातमें मैंने अभी-अभी जिस प्रेमका अनुभव किया है, इस प्रेमके साथ उसकी तुलना करता हूँ तो मुझे दोनों एक जैसे लगते हैं। जहाँ जाता हूँ वहाँ लगता है जैसे गुजरातका प्रेम ही यहाँ भी उमड़ रहा है। चूंकि मैं सिन्धको भी अपना ही देश मान सकता हूँ, सिन्धियोंके सुख-दुःखमें भी उतना ही भाग ले सकता हूँ । सिन्धकी बलि देकर मैं स्वप्नमें भी गुजरातका लाभ नहीं चाहता। लेकिन गुजरात के दोषोंको सिन्ध ग्रहण न करे, मेरा देशप्रेम और मेरा धर्म इसके लिए मुझे सजग रहने-के लिए कहता है । जिस तरह मैं यह बात कतई पसन्द नहीं कर सकता कि गुजरातके कारण सिन्धको नुकसान पहुँचे उसी तरह विदेशके बारेमें भी मेरे मनमें वही भाव रहता है। विदेशको नुकसान पहुँचाकर मैं हिन्दुस्तानको लाभ पहुँचानेकी भूल कदापि न करूँ, इसी भावनाको मैं सच्चा स्वदेशाभिमान मानता हूँ ।

लेकिन मेरा स्वदेशाभिमान जितना विशाल है उतना ही संकुचित भी है। सारी दुनियाका कल्याण करनेमें मुझे कोई रस नहीं आता । मुझे तो अपने देशका कल्याण करनेमें ही रस आता है। देशके कल्याणमें मैं जगत्का कल्याण देखता हूँ। मेरा वर्णा-श्रम धर्म मुझे सिखाता है कि यदि मैं यूरोपमें उत्पन्न न होकर भारतमें उत्पन्न हुआ ऐसा प्रतीत होता है कि

१. गांधीजीने २४ अप्रैलसे ३० अप्रैल तक सिन्धका दौरा किया था । यह लेख सोमवार २५ अप्रैलको ही लिखा गया होगा ।