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गुजरातियोंसे

हूँ तो उसका कुछ अभिप्राय होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति कर्जदारके रूपमें जन्म लेता है। उसे अगर किसीसे कुछ लेना होता है तो इसका उसे भानतक नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए। जो व्यापारी अपने उधार खातेकी जाँच कर लेता है उसे अपने जमा खातेकी फिक्र ही नहीं करनी पड़ती। जो अपने कर्त्तव्यको निभाना सीख लेता है उसे उसके अधिकार स्वयंमेव मिल जाते हैं।

मेरा स्वदेशाभिमान, देशके प्रति मेरा क्या कर्त्तव्य है, उसी ओर मेरा ध्यान खींचता है। मेरा गुजराती होनेका अभिमान मुझे बताता है कि भारतके प्रति एक गुजरातीका क्या कर्तव्य है। यदि यह विचार सच्चा हो, यदि गुजराती भाई-बहन इसे स्वीकार करते हों तो गुजराती निस्सन्देह अपने कर्त्तव्यसे अच्छी तरह परिचित हैं।

गुजरात अकेला ही इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति अपना-अपना स्वराज्य प्राप्त कर सकता है। गुजरातका प्रत्येक गाँव अपना स्वराज्य प्राप्त कर सकता है। और सभी अपना-अपना स्वराज्य प्राप्त करके हिन्द स्वराज्य प्राप्त करनेमें अपना-अपना योग दे सकते हैं ।

जो अपने हिस्से-भरका योग देकर चुपचाप बैठा रहेगा वह कंजूस माना जायेगा । स्वराज्यकी शर्त यह है कि सब कोई अपने हिस्सेका योग दें, इतना ही पर्याप्त नहीं बल्कि सब लोग उनसे जितना बन पड़े उतना योग दें। जब सब लोग सबका बोझ उठानेके लिए तैयार हो जायेंगे तभी सबका बोझ समान रूपसे बॅटाया जा सकेगा, क्योंकि सबकी शक्ति एक समान नहीं होती। ऐसी स्थितिमें अगर सभी अपने-अपने हिस्से-भरका कार्य करनेके बाद बैठ जायें तो गरीब कुचल जायेंगे; अमीर उन्हें रौंद डालेंगे।

हिन्दुस्तानकी आवादी बत्तीस करोड़की है । एक करोड़ रुपया देने-- इकट्ठा करने--का मतलब प्रति व्यक्तिके हिसाबसे दो पैसे इकट्ठा करना हुआ । यदि करोड़पति दो पैसे देकर ही बैठ रहें तो कंगालकी ओरसे, बालकोंकी ओरसे, लूले-लँगड़ोंकी ओरसे तथा भिखमंगोंकी ओरसे कौन देगा? सीधा हिसाब ही यह है कि करोड़पतिको ज्यादा बोझ उठानेकी वृत्ति रखनी चाहिए। जिसे भगवान्ने बहुत दिया है वह बहुत दे ।

इस तरहसे हिसाब किये जानेपर गुजरातको अपना हिसाब लगाना चाहिए। गुजरात अगर दस लाख रुपया इकट्ठा करे तो वह कोई ज्यादा नहीं कहा जायेगा। बाहर रहनेवाले गुजरातियोंको मैं इनमें नहीं गिनता। बंगालमें रहनेवाले गुजराती भले ही गुजरातको धन भेजें, लेकिन उन्हें बंगालमें अपना हिस्सा देना ही चाहिए । मद्रासमें बसनेवाले गुजरातियोंको मद्रासकी सेवा करनी ही चाहिए । जहाँसे गुजराती धन प्राप्त करें वहां वे अपनी कमाईका एक अच्छा भाग खर्च करें, यह उनको और हिन्दुस्तानकी सभ्यताको शोभान्वित करनेवाली बात है। इस तरह विचार करके ही मैं गुजरातके लिए दस लाख रुपयेकी रकम निर्धारित करता हूँ।

इस गिनतीमें मैंने बम्बईको भी अलग रखा है। बम्बईमें रहनेवाले गुजराती बम्बईमें भारी दान दे ही रहे हैं । बम्बईसे मुझे कितनी आशाएँ हैं इसके बारेमें मैं बादमें लिखनेकी सोचता हूँ। अभी तो गुजरातमें बसनेवाले गुजरातियोंसे ही दस लाख रुपये मिलनेकी आशा रखता हूँ ।