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२६. एक अब्राह्मणकी शिकायत'

मुझे इसी तरहके और भी कई पत्र मिले हैं। सभी पत्रलेखकोंने स्पष्ट ही मेरी बात समझनेमें भूल की है। मद्रासवाले अपने भाषणकी रिपोर्ट मेरे देखनेमें नहीं आई। मैं नहीं जानता कि कहीं उसीमें तो अर्थका अनर्थ नहीं कर दिया गया है । लेकिन फिर भी मैं यह दावा करता हूँ कि ब्राह्मणोंने हिन्दू धर्म या मानवताकी जो सेवा की है उसमें द्रविड़ सभ्यताकी उन सिद्धियोंकी वजहसे, जिनसे कोई इनकार नहीं करता, न तो कोई फर्क पड़ता है और न उन सेवाओंका महत्त्व ही कम होता है। पत्रलेखकोंका ऐसा सोचना वाजिब नहीं है कि दक्षिणके द्रविड़ और उत्तरके आर्य परस्पर सर्वथा पृथक और भिन्न हैं। उन्हें इस प्रवृत्तिसे सचेत रहना चाहिए। आजका भारत केवल द्रविड़ और आर्य सभ्यताका नहीं, और भी कई सभ्यताओंका घुला-मिला रूप है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २७-४-१९२१

२७. टिप्पणियाँ

हड़तालको हलका न बनायें

हड़तालोंका तो ताँता ही बँध गया जान पड़ता है। इसमें कराचीने तो हद ही कर दी है। एक महीनेमें पाँच हड़ताल। कोई जेल जाये तो हड़ताल, कोई जेलसे छूटे तो हड़ताल, गवर्नरके आनेपर भी हड़ताल! इस तरह हड़ताल करनेसे हड़तालकी कीमत एकदम जाती रहती है। मेरे खयालसे तो हड़ताल एक पवित्र और बलवान्सा धन है। किसी गम्भीर धर्मके प्रसंगपर हड़ताल होती है अथवा जब जनताकी भावनाएँ अत्यन्त उग्र होती हैं तब उन्हें प्रदर्शित करनेके लिए हड़ताल की जाती है। प्रत्येक प्रसंगको धार्मिक समझकर अथवा हर समय भावनाओंको उग्र बनाकर हम हड़ताल करते हैं तो इससे हम धार्मिकता और भावोद्वेगकी तीव्रताको कम ही करते हैं। अगर मुझे यह बात महसूस न हुई होती कि सत्याग्रह सप्ताह में हड़तालके बिना काम नहीं चल सकता तो मैं इन सस्ती हड़तालोंके मौसममें उस हड़तालके मूल्यको सस्ता करनेका

१. ८ अप्रैल, १९२१ को मद्रास बीचपर दिये गये गांधीजीके भाषणके विवरणको पढ़कर उसके विरोध में अनेक पत्र आये थे । सी० कंडास्वामीका ११ अप्रैलको मद्राससे लिखा गया यह पत्र उनमें से एक है। इसमें उन्होंने कहा था कि गांधीजीको द्रविड़ सभ्यता और ब्राह्मण विरोधी आन्दोलनके रहस्यकी कोई जानकारी नहीं है और इसलिए उन्होंने अब्राह्मगोंको लांछित किया है । प्रस्तुत टिप्पणी उसका उत्तर है। गांधीजीके भाषणके लिए देखिए खण्ड १९ ।