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साधन कभी न बनता। मुझे उम्मीद है कि लोग अब हिन्दुस्तानमें सभी जगह बात-बातपर हड़ताल नहीं करेंगे। सबसे अच्छा उपाय तो यह है कि जबतक कांग्रेस और खिलाफत समिति सलाह-मशविरा करके सार्वजनिक विज्ञप्ति न निकालें तबतक लोग हड़ताल बिलकुल न करें ।

जेल-महल

और फिर यदि किसीके जेल जानेपर हम हड़ताल करें तो यह हमारी दुर्बलताकी निशानी है। जेलोंको तो हमें भर देना है। हजारों व्यक्तियोंके जेल जानेपर ही छुट-कारा पाना सम्भव है। सामान्यतया अत्याचारी राज्यके अन्तर्गत अच्छे व्यक्तियोंके लिए जेल ही एक पवित्र स्थल है। जेल हमारी स्वतन्त्रताका स्थान है। नितान्त निर्दोष व्यक्ति भी जब बहुत बड़ी संख्या में जेल जाने लगें तब आप समझ लें कि स्वराज्य समीप ही है । इस राज्यमें हम अगर जेलको ही अपना स्वाभाविक घर बनाना चाहते हों तो जेल भेजे जानेपर हड़तालें करनेका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। जब हम सचमुच जेलका भय छोड़ देंगे तब सरकार हमें जेल भेजना भूल जायेगी। जिस दिन हम घोर अत्याचारोंको भी हँसते-हँसते सहन करेंगे, लेकिन पेटके बल नहीं रेंगेंगे,'यूनियन-जैक' के आगे सलामी नहीं देंगे, नाक नहीं रगड़ेंगे और डायरशाहीके विरुद्ध खड़े डटकर गोलियोंकी बोछारको पीठपर नहीं बल्कि सीनेपर झेलेंगे उसी दिन स्वराज्य मिल जायेगा; क्योंकि इसीमें सच्ची वीरता है, इसी को क्षत्रियत्व कहते हैं । क्षत्रियत्वका विकास करने के लिए पुष्ट शरीरकी आवश्यकता नहीं है बल्कि उसके लिए तो मजबूत और निडर हृदयकी जरूरत है। क्रूरता और कठोरता क्षत्रियत्वके गुण नहीं बल्कि सहनशीलता, क्षमा, दया, उदारता, अपलायन (युद्धक्षेत्रसे न भागना) और गोलियोंकी बौछारमें भी अडिग, निर्भयतापूर्वक खड़े रहनेकी शक्तिमें ही क्षत्रियत्व है। सच्चा क्षत्रिय प्रहार नहीं करता बल्कि प्रहारको अपने ऊपर झेल लेता है । नन-कानाके महन्तको क्षत्रिय नहीं कहा जा सकता, वह तो खूनी कहलायेगा । लछमनसिंह और दलीपसिंह शुद्ध क्षत्रिय थे। और ऐसा क्षत्रियत्व तो एक दुर्बल अपंग बालकमें भी हो सकता है । शान्तिमय असहयोग क्षत्रियत्वके इस गुणका विकास करनेका साधन है। इमाम हुसैन और हसन क्षत्रिय थे। उनपर जुल्म करनेवाला अत्याचारी था। बालक प्रह्लाद क्षत्रिय था । हिरण्यकशिपु राक्षस था । वर्णाश्रमका यह अर्थ नहीं कि क्षत्रियत्व अन्य वर्णोंमें होता ही नहीं। चारों वर्णोंमें वह गुण होना चाहिए लेकिन क्षत्रिय जातिमें यह गुण प्रधान होना चाहिए और इसका विकास करना ही उनका प्रमुख ध्येय होना चाहिए। लेकिन जो क्षत्रिय कुलमें जन्म लेकर अपने पशुबलका दुर्बल व्यक्तिपर प्रयोग करता है वह क्षत्रिय नहीं बल्कि अक्षत्रिय, राक्षस है। भारतसे क्षत्रियत्वका लगभग लोप हो गया है । इस शान्तिमय असहयोगका हेतु उसका फिरसे विकास करना है।

१. अप्रैल १९१९ में पंजाबमें मार्शल लॉ के दिनोंमें ये सब अत्याचार लोगोंपर किये गये थे। देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १२८-३२२ ।

२. इस घटनाके लिए देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ४२८-३२ ।