पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असभ्यता

माननीय गवर्नर महोदयकी कराची यात्रा के दौरान जो पत्रक प्रकाशित किया गया था उसकी एक प्रति मुझे मिली है। उसमें ये वाक्य हैं:

गवर्नर आज सबेरे यहाँ आनेवाले हैं, उनके जलूसमें शामिल न हों। पूजनीय कांग्रेसका आदेश है कि वर्तमान सरकारके साथ किसी भी भारतीयको सहयोग नहीं करना चाहिए। सोमवार २१ तारीखके दिन हड़ताल करके आप सरकारको बता दें कि हमें स्वराज्य चाहिए। सब काम-धन्धे बन्द करके प्रार्थना करें कि हमें एक वर्षके भीतर स्वराज्य मिल जाये ।

असहयोगीको असभ्य व्यवहार नहीं करना चाहिए । ओहदेको जो सम्मान हम बादमें भी देना चाहते हैं, सम्मानसूचक उन शब्दोंका व्यवहार करना हमें नहीं छोड़ना चाहिए । बम्बईके गवर्नरके विरुद्ध एक व्यक्तिके रूपमें अथवा पदके विरुद्ध हमारा असहयोग नहीं है। हमारा असहयोग तो इस पूरी राजनीतिके विरुद्ध है। जब अमुक गवर्नर अपने सूबेके दौरेपर आये और जब उसके विरुद्ध हमें खास कुछ कहना न हो तब हमारा हड़ताल करना निरर्थक है। उनके सम्बन्धमें उद्धृत भाषामें लिखना असभ्यता है। हम जलियाँवाला बागका हत्याकाण्ड करनेवाले व्यक्तिको पूरे नामसे पुकारते हैं, जनरल डायर कहते हुए हमें क्षोभ नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए। जो असहयोगी भाषाके रूढ़ नियमोंकी अवहेलना करता है वह शान्तिके नियमको भंग करता है ।

बताना किसे ?

कांग्रेसका आदेश प्रत्येक अवसरपर हड़ताल करनेका नहीं है, तब भी उपर्युक्त सार्वजनिक विज्ञप्तिमें ऐसा आभास दिया गया है कि कांग्रेसका वैसा आदेश है। हड़ताल करके हमें सरकारको क्या बताना है? हमें तो स्वराज्य अपनी शक्तिके द्वारा प्राप्त करना है। हम हड़ताल करके अगर शक्ति प्राप्त कर सकते हों तो हमें ऐसा अवश्य करना चाहिए। इस अवसरपर तो विज्ञप्ति ही यह सूचित करती है कि हमारी हड़- तालका उद्देश्य सरकारको कुछ बतानेका था। सरकारको कुछ भी बतानेकी हमें बहुत जरूरत नहीं है । अथवा कुछ बताना ही है तो वह ठोस कार्यके द्वारा बतायें और ठोस कार्य क्या है, यह कांग्रेसने बता ही दिया है।

मेरी प्रार्थना

अन्त्यज-परिषद्के' समय मैंने जो प्रार्थना की थी उसके सम्बन्धमें लिखते हुए एक सज्जन लिखते हैं कि वे मेरी बात समझ नहीं सके हैं। मेरा भाषण सही-सही प्रकाशित हुआ है या नहीं, सो मैं नहीं जानता। मोक्ष मेरी प्रार्थना है; मुझे मोक्ष ही प्रिय है। मेरे सब प्रयत्न इसी जन्ममें मोक्ष प्राप्त करनेके हैं। मैं असहयोगके महान्आ न्दोलनमें भी इसी कारण पड़ा हूँ । तथापि यदि मैं अपने मनोरथमें इस जन्ममें सफल नहीं होता तो मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे दूसरा जन्म अन्त्यजके

१. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ५७६-८१ ।