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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर दें। कार्यकर्त्ताओंको तो अपनी बातचीतमें दोहरी सावधानी बरतनी चाहिए। उन्हें सरकार और उसके अफसरोंके दोषोंकी चर्चा बन्द कर देनी चाहिए, फिर वे चाहे यूरोपीय हों या हिन्दुस्तानी । लम्बी-चौड़ी डींगें मारनेके स्थानपर हमें कांग्रेस द्वारा देश के सामने प्रस्तुत रचनात्मक कार्यक्रमपर ध्यान देना चाहिए। यदि जनता आन्दो- लनके लिए धन, जन और साधन जुटाने आगे न आये तो भी हमें रोष प्रकट नहीं करना चाहिए। पुलिसके सभी आदेशोंको पूरी तरह मानना चाहिए। जाने-माने कार्य- कर्त्ताओंपर मुकदमे चलाये जाने अथवा उनके जेल भेजे जानेकी अवस्थामें जलूस नहीं निकालने चाहिए और न हड़तालें ही होनी चाहिए। यदि हम निर्दोष व्यक्तियोंके जेल भेजे जानेका स्वागत करें, जो हमें अवश्य करना चाहिए, तो हमें अपना आचरण निर्दोष बनाये रखनेका अभ्यास करना होगा । और यदि हमें कुछ विचार रखने या ऐसे कामोंके कारण सजा मिले, जिन्हें करना हमारा कर्त्तव्य हो जैसे सूत कातना, चन्दा इकट्ठा करना, कांग्रेसके सदस्य बनाना आदि तो हम इसे अपना सौभाग्य मानें। सविनय अवज्ञा बिलकुल न करें। हमने गम्भीरसे-गम्भीर उत्तेजनाके सम्मुख भी अहिंसक बने रहनेका व्रत लिया है। इसके लिए हमें बड़ा सावधान रहना होगा; कहीं ऐसा न हो कि हमारी मूर्खतासे ही हमारी विजयकी घड़ी हार और अपमानकी घड़ीमें न बदल जाये । 'टाइम्स ऑफ इंडिया ' ने जिस परीक्षाका सुझाव दिया है, मैं पूर्णतः उसके पक्षमें हूँ । यह मानना पड़ेगा कि प्रत्यक्ष रूपसे आत्म-बलपर आधारित होनेके कारण इस आन्दोलनकी महत्ताकी एकमात्र कसोटी इसके अनुयायियोंकी परम निष्ठा ही हो सकती है। यदि इस निष्ठापर उचित रूपसे सन्देह करनेका कोई मौका दिया गया तो उसमें ऐसी शक्तियोंको प्रवेश करनेका अवसर मिल जायेगा जो उसके नैतिक रूपको नष्ट किये बिना नहीं रहेंगी ।

सिन्ध चर्चा

सिन्धका कार्यक्रम बड़ा व्यस्त रहा । २४ तारीखसे ३० तारीख के बीच हैदराबाद, कराची, लरकाना, शिकारपुर, सक्खर, रोहड़ी, कोटड़ी और मीरपुर खासकी यात्रा निःसन्देह एक काफी बड़ा काम था । और सक्खरके श्री मूलचन्दने' ठीक ही कहा :"काम आधा ही हो पाया।" दूसरा मित्र बोला, “खैर, कुछ नहीं से तो आधा ही भला ।” निःसन्देह सिन्धको अन्य किसी भी प्रान्त जितने बढ़िया साधन उपलब्ध हैं । उसके पास कार्यकर्त्ता हैं, धन और योग्यता भी है । यदि वह चाहे तो नेतृत्व कर सकता है। लेकिन ऊपर बताई गई सुविधाओंके रहते हुए भी आज वह ऐसा करनेमें असमर्थ है। २५ तारीखको 'यंग सिन्ध' में प्रकाशित अपने पत्र में बादके अनुभवोंके बावजूद कोई परिवर्तन करनेकी जरूरत नहीं समझता ।

कराचीकी हालत सबसे खराब है । सिन्धमें जिलेवार दल हैं और उनको राह दिखानेवाला कोई केन्द्रीय संगठन नहीं है। लेकिन कराचीमें तो कोई दल भी नहीं है,

१. एक वकील जिन्होंने गांधीजीके दौरेके असें में वकालत छोड़ दी थी।

२. यह प्राप्त नहीं है।