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गुट कई हैं। रुपये-पैसेका हिसाब-किताब रखनेके सम्बन्धमें जिस गड़बड़ीकी शिकायतें मेरे कानमें पड़ीं वे कराचीके बारेमें ही थीं। मुझे बताया गया था कि वहाँके सार्व- जनिक राष्ट्रीय स्कूल अपना हिसाब प्रकाशित नहीं करते । कराची किसी एक नेताको नहीं मानता। मैंने तो धनका गबनतक किये जानेके आरोप सुने हैं। मैं कह नहीं सकता कि ये आरोप किस हदतक सही हैं । परन्तु इतनी अधिक बार इतने अधिक लोगोंने इन आरोपोंकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया है कि मैं समझता हूँ कि मुझे जनसाधारणकी निगाह में यह बात अवश्य ला देनी चाहिए। जनता जो धन हमें देती है उसे हम पाई-पाईका हिसाब देनेके लिए बाध्य हैं। राष्ट्रीय स्कूलोंके संचालकोंसे मैं यह कहूँगा कि वे अपनी आमदनी और खर्चका न सिर्फ पूरा-पूरा हिसाब दें वरन् अपने स्कूलोंको सार्वजनिक व्यवस्थाके अधीन कर दें। मेरे खयालसे कोष केवल दो ही होने चाहिए--एक तिलक स्वराज्य कोष और दूसरा खिलाफत कोष । सभी प्रकारके कार्य इन दोनोंमें से किसी एक संगठनके अधीन होने चाहिए। सभी स्कूलोंका खर्चा इन दोनों कोषोंसे ही चलाया जाना चाहिए। अलग-अलग कामोंके लिए अलग- अलग धन जमा नहीं करना चाहिए। हमें अपनी शक्ति और साधनोंको एकत्र करके उनको सुसंगठित रूप देना है; अनेक संगठन खड़े करके उनको छिन्न-भिन्न नहीं करना है। अपने आपको स्वराज्य पाने योग्य सिद्ध करनेके लिए हमें चाहिए कि हम अपने आपसी मतभेद समाप्त कर दें, ईर्ष्या-द्वेषसे दूर रहें, केन्द्रीय संगठनका नियन्त्रण मानें; बड़ी-बड़ी रकमें इकट्ठा करने और उन्हें ईमानदारीसे खर्च करनेके योग्य बनें, अपने बच्चोंकी शिक्षाका प्रबन्ध स्वयं करें, अपने झगड़ोंको स्वयं निबटायें, भोजन और वस्त्रके सम्बन्धमें प्रत्येक गाँव आत्मनिर्भर बने और अस्पृश्यता तथा मद्यपान-जैसी देश-व्यापी बुराइयोंको निकाल बाहर करें ।

सिन्धमें हर जगह राष्ट्रीय स्कूल खुल रहे हैं। इनके प्रबन्धकोंको मैं आगाह कर देना चाहता हूँ कि उनको इनके लिए लम्बा-चौड़ा बजट नहीं बनाना चाहिए । मेरा खयाल है कि कमसे कम इस सालके लिए प्रत्येक स्कूल और कालेजको मुख्यतः धुनाई और कताईकी संस्था बन जाना चाहिए। उसको अपने महीनेका खर्च अपने यहाँ पढ़नेवाले लड़के-लड़कियोंके श्रमसे प्राप्त आयसे पूरा करना चाहिए। बड़ा खर्च तो सिर्फ मामूली फर्नीचर और चरखोंकी खरीदपर होना चाहिए। अभी अंग्रेजीके अध्ययनके लिए थोड़ा भी समय रखकर हमें राष्ट्रका समय नष्ट नहीं करना चाहिए। यदि स्वराज्य एक सालके अन्दर हासिल करना हो और यदि असहयोग कार्यक्रम तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके संकल्पोंमें हमारी आस्था हो तो ईमानदारीका यही तकाजा है कि हम अवश्य ही कुछ आधारभूत सिद्धान्तोंको मानकर चलें ।

खैर, आलोचना तो काफी हो चुकी है। वहां ऐसी भी बहुत-सी बातें थीं जिनसे आशा बँधती है । जनताका अदम्य और विभोर कर देनेवाला उत्साह देखकर मन पुलकित हो उठता था । सिन्धकी महिलाओंने उदारतापूर्वक तिलक स्मारक कोषमें दान दिया है । २५,००० रु०की थैली भेंट करके कराची सबसे आगे रहा । यह थैली मुझे सौंपी गई है और कहा गया है कि उसे मैं जैसे चाहूँ खर्च करूँ। मैं तो इसे तिलक स्मारक-कोष में देनेका ही निश्चय कर सकता हूँ ।