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सवालोंका सिलसिला

रहकर उन्हें काम न करना पड़ता तो वे एक लोकप्रिय गवर्नर होते। लोगोंके जेल भेजे जानेपर अथवा उनको रिहा करानेकी दृष्टिसे हड़ताले करना भी इतना ही कुरुचिपूर्ण है। किसीके जेल भेजे जानेपर हमारे मनमें भयका संचार नहीं होना चाहिए।अन्यायी शासनके अधीन निर्दोष व्यक्तियोंका जेल जाना उसी प्रकार स्वाभाविक माना जाना चाहिए जैसे अस्वास्थ्यकर स्थान व परिस्थितियोंमें रहनेवाले लोगोंका बीमार पड़ जाना। जैसे ही जेलोंका डर हमारे दिलोंसे निकल जायेगा वैसे ही सरकार हमें जेल भेजना बन्द कर देगी। जब सरकारकी अधिकसे-अधिक भयावह सजाओं, यहाँतक कि डायरशाहीसे भी हमारे मनोंमें भयका संचार न हो सकेगा तब सरकारका अस्तित्व अपने आप मिट जायेगा या वह अपने आपको सुधार लेगी। इसीलिए जेल भेजे जानेके सम्बन्धमें हड़ताल करना घबराहट और भयका द्योतक है; इस कारण उसको वर्जित मानना चाहिए। मैं 'इंडियन सोशल रिफॉर्मर' की इस बातसे पूरी तरह सहमत हूँ कि स्थानीय नेताओंको प्रधान कार्यालयकी अनुमति लिये बिना हड़तालकी घोषणा नहीं करनी चाहिए। मैं तो यही कहूँगा कि सामान्यत: ६ और १३ अप्रैलको छोड़कर अन्य सभी अवसरोंपर हड़तालकी घोषणा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और केन्द्रीय खिलाफत कमेटीकी सम्मिलित रायसे की जाये । जल्दी-जल्दी हड़ताले करके उन्हें महत्त्वहीन बना देना अनिष्टकर है ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ४-५-१९२१

२९. सवालोंका सिलसिला'

पहले सवालका जवाब मैं एक अलग लेखमें दे रहा हूँ। दूसरे सवालके बारेमें मेरा खयाल ऐसा है कि ईश्वरका भय माननेवाले लोग ही सच्चे असहयोगी बन सकते हैं। लेकिन असहयोगका कार्यक्रम अपनानेके लिए किसीको अपने धर्म या विश्वासका उल्लेख करना जरूरी नहीं है। जिसे अहिंसामें विश्वास हो और जो असहयोगके कार्य-क्रमको मंजूर करे ऐसा हर आदमी अवश्य ही असहयोगी बन सकता है। तीसरे सवाल-के बारेमें मैं ऐसा समझता हूँ कि पत्र-लेखकने परिस्थितिकी वास्तविकताको समझने में भूल की है। देशने पूर्ण असहयोग शुरू नहीं किया इसका कारण विश्वास या इच्छाकी कमी न होकर योग्यता अथवा तैयारीका न होना है। इसीलिए तो अभीतक सरकारी कर्मचारियोंसे नौकरियाँ छोड़नेकी बात नहीं कही गई है। सरकारी कर्मचारी जब भी चाहें नौकरी छोड़नेके लिए स्वतन्त्र हैं। लेकिन उनसे सरकारी नौकरी छोड़नेकी बात तभी कही जा सकती है जब हिंसाके न भड़क सकनेकी पूरी और समुचित व्यवस्था कर ली गई हो। अतएव जबतक देश नौकरी छोड़नेवाले प्रत्येक व्यक्तिको कोई दूसरा काम

२. बरेलीके अहमद हुसैनने १५ अप्रैलको गांधीजीसे चार प्रश्न लिखकर पूछे थे। देखिए परिशिष्ट १ ।

२. देखिए अगला शीर्षक ।