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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुहैया कर देनेकी स्थितिमें नहीं हो जाता तबतक नौकरी छोड़नेकी बात नहीं उठाई जा सकती। अबतक हमारा ऐसा न करना किसी मसलहतके अन्तर्गत न माना जाये जैसा कि आमतौरपर माना जा रहा है। शुद्धतम धर्मशीलतासे बढ़कर कोई मसलत हो ही नहीं सकती । ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो विधि-सम्मत तो हैं किन्तु उपयुक्त बिलकुल नहीं होतीं। असहयोगका आदर्श ही हमारी विधि है और वह देशके सामने है।

चौथा सवाल स्वराज्यके अर्थके बारेमें है। स्वराज्यकी मेरी सीधी-सादी व्याख्या यह है कि भारत अपना कामकाज बिना किसी बाहरी दखलके कर सके। उसे अपने सेना सम्बन्धी व्यय और राजस्व प्राप्तिका तरीका अपने ढंगसे इस्तेमाल करनेकी आजादी होनी चाहिए। उसमें अपने सारे सैनिकोंको, वे कहीं भी क्यों न हों, वापस बुलानेकी क्षमता होनी चाहिए । यह काम कैसे होगा या कैसे किया जा सकता है,यह सब देशपर, देशकी जनतापर निर्भर है । जनता द्वारा स्वतन्त्रतापूर्वक चुने हुए भारतके प्रतिनिधियोंको ही इसके अमलका तरीका तय करना चाहिए। अगर एक सालके अन्दर स्वराज्य कायम नहीं किया जा सका और मेरा बस चला तो स्कूल छोड़नेवाला एक भी लड़का लौटकर मदरसे वापस नहीं जायेगा और न वकालत छोड़नेवाला कोई भी वकील फिरसे अदालतमें लोटेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ४-५-१९२१

३०. अफगानी हमलेका हौआ

एक पत्र-लेखकने कई सवाल पूछे हैं, जिन्हें पाठकोंके लिए इसी अंकमें दूसरी जगह दिया जा रहा है । उनका सबसे अहम सवाल मौलाना मुहम्मद अलीके भाषण के सम्बन्धमें है जो उन्होंने अफगान हमलेकी आशंकाके सम्बन्धमें दिया था उन्होंने मौलाना मुहम्मद अलीके जिस भाषणका हवाला दिया है उसे मैंने पढ़ा नहीं है। लेकिन अगर अफगानिस्तानका अमीर ब्रिटिश सरकारसे लड़ाई छेड़ दे तो मौलाना मुहम्मद अली कुछ करें या न करें मैं खुद जो कुछ करूँगा वह एक तरह से अमीरकी मदद ही कहलायेगी अर्थात् में अपने देशवासियोंसे खुल्लमखुल्ला यह कहूँगा कि जो सरकार देशका विश्वास खो चुकी है उसे सत्तारूढ़ बने रहनेमें मदद देना गुनाह है। दूसरी ओर मैं देशवासियोंसे यह भी नहीं कहूँगा कि वे अमीरकी मददके लिए धन इकट्ठा करें। ऐसा करना अहिंसाकी उस भावनाके विपरीत होगा जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनोंने खिलाफत, पंजाब और स्वराज्यकी खातिर सिद्धान्तके रूपमें अपनाया है और मेरा खयाल है कि जो कुछ मैंने कहा है मौलाना मुहम्मद अलीके भाषणका अभिप्राय उससे अधिक नहीं होगा। जबतक हिन्दू-मुस्लिम समझौता बरकरार है तबतक वे इसके सिवा अन्य कोई बात कह भी नहीं सकते । मुसलमान चाहें तो समझौता तोड़नेके

१. देखिए पिछला शीर्षक ।