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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है: जब हम खुद सरकारसे सहयोग नहीं कर रहे हैं तो यह कैसे चाह सकते हैं कि दूसरे उसके साथ सहयोग करें।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ४-५-१९२१

३१.गांधी--तब और अब

'टाइम्स ऑफ इण्डिया' ने फिर मुझपर कपट करनेका आरोप लगाया है। उसके पिछले लेखमें भी यही आरोप व्यंजित होता था। मैंने पिछले दिनों उस लेखके बारेमें इन स्तम्भोंमें लिखा था। मेरा लेख काफी संयत था । उसपर किसीको आपत्ति नहीं हो सकती थी । निष्कपटताके बारेमें मेरी एक प्रतिष्ठा बन गई है और मैं निष्कपट होनेका दावा भी करता हूँ, इसलिए मैं अवश्य ही चाहूँगा कि मेरी इस प्रतिष्ठापर कोई आँच न आने पाये। "कुहरा" शीर्षक मेरा लेख आलोचकोंको मेरा जवाब समझा जाना चाहिए। मुझे जितना-कुछ कहना था मैंने उसमें कह दिया है। किसी भी मनुष्यको उसकी मृत्युसे पहले न्यायपूर्ण, निष्कपट या भला करार नहीं दिया जा सकता । लेकिन मैं 'टाइम्स ऑफ इण्डिया के लेखककी कुछ गलत बयानियोंको सही रूपमें पेश कर देना चाहता हूँ। मैंने जब सत्याग्रह शुरू करनेका ऐलान किया था तब भी मुझपर आरोप लगाये गये थे। कहा गया था कि मैंने राजनीतिसे अलग रहनेकी, गैर-राजनीतिक बने रहनेकी अपनी आन छोड़ दी है। दक्षिण आफ्रिकामें भी मेरे आलोचकोंने मेरे पिछले कामोंका हवाला देकर ही मेरी आलोचना की थी। अभीतक जितने भी आन्दोलनोंसे मेरा सम्बन्ध रहा है, सभीकी आलोचना हुई है और आलोचकोंने मेरे पिछले कामकी सराहना करते हुए ही मेरे हर नये आन्दोलनकी आलोचना की है। मैं यह तथ्य यह दिखानेके लिए पेश नहीं कर रहा हूँ कि वर्तमान आलोचकका आरोप गलत है बल्कि मैं अनजाने बरते गये कपटाचार और आत्म-प्रवंचनाके आरोपपर विश्वास न करनेके लिए अपने को ही मजबूत बनाना चाहता हूँ। मैंने सत्याग्रह-को मुल्तवी कभी नहीं किया था और न कभी सार्वजनिक जीवनसे संन्यास ही लिया था। हाँ, मैंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन मुल्तवी किया था, वह आज भी मुल्तवी ही है। वह मैंने इसलिए किया था कि तब मेरा विश्वास था, और आज भी है, कि देश उसके लिए अभी तैयार नहीं है। मेरी हिमालय-जितनी बड़ी भूल यह थी कि मैंने देशकी तैयारीका गलत अन्दाज लगाया था। जिस ढंगका असहयोग शुरू किया गया है उसमें ऐसा कोई खतरा नहीं है, जैसा कि सविनय अवज्ञामें है। असहयोगकी भाँति,सविनय अवज्ञा सदा ही एक कर्त्तव्य नहीं होता। इसीलिए मैंने कहा है कि मुझे असह- योग करनेकी सलाह देते जाना चाहिए चाहे उससे अराजकता फैलनेका अंदेशा ही

१. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ५६६-६७ ।

२. देखिए "कुहरा ", २०-४-१९२१ ।