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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पारसियोंने कभी धार्मिक झगड़ा नहीं किया और अपने धर्मका स्वतन्त्र रहकर पालन कर सकनेमें सन्तोष माना है।

जगत् में पारसियोंकी उदारताके समकक्ष कोई नहीं पहुँचता ।

पारसियोंमें दूसरोंकी अच्छाईको परखने और उसे अपनानेकी भी पर्याप्त शक्ति है।पारसियों-जितनी छोटी किन्तु विख्यात कौम दुनियामें दूसरी नहीं है। इससे मैं अनुमान करता हूँ कि उनके धर्मशास्त्र उच्च कोटिके हैं। वे सरल और ऐसे हैं जिन्हें बच्चा भी समझ सकता है ।

लेकिन अगर पारसी कौम अपनी प्राचीन महत्ताकी पूंजीपर निर्भर रहकर संसार-से जूझना चाहे तो भारी भूल करेगी ।

अन्य लोगोंके समान ही पारसी भी इस समय पश्चिमकी विषैली हवासे ग्रसित हैं। उन्होंने प्राचीन सादगीको त्यागना आरम्भ कर दिया है। उनमें भोग-विलास बढ़ता जा रहा है। इस कौमके पास बहुत ज्यादा पैसा होनेके कारण कुछ लापरवाही आ गई जान पड़ती है। छोटी कौम नीतिके चरण-चिह्नोंपर चलती हुई जिस तरह शीघ्र उन्नति कर सकती है उसी तरह अगर वह अनीतिका अनुसरण करे तो शीघ्र ही गिर भी सकती है और यदि वह गिरती है तो उसका नाश होनेमें देर नहीं लगती।

मेरे पिताके पास एक पारसी सज्जन आया करते थे। उनसे उनका सम्बन्ध बहुत निकटका था। मैं उस समय बालक था। मैं ईदुलजी सेठको कैसे भूल सकता हूँ ? वे जब मेरे पितासे मिलने आया करते थे तब वे सरलताकी ही बात किया करते थे। वे स्वयं बहुत सादे थे । वे राजकोटके ठाकोर साहबके सम्बन्धी भी थे । वे उनके सामने भी बेकार खर्च और आडम्बरके विरुद्ध बात करनेमें हिचकिचाते नहीं थे। वे जितने सादे थे उतने ही साहसी भी थे और उतने ही सज्जन भी । तभीसे मैं यह मानने लगा हूँ कि पारसी कौम चाहे तो बहुत कुछ कर सकती है, बहुत कुछ दे सकती है। मेरा विश्वास है कि पारसी कौम इस विषैली हवाके प्रभावसे बच जायेगी । उसका साहस, उसका धर्म उसे बचायेगा। और मुझे भरोसा है कि हिन्दुस्तानके बाशिन्दोंकी भाँति पहलेके समान ही हिन्दुस्तानकी सेवा करेगी। ईश्वर उसे विवेक, सद्बुद्धि और हिम्मत दे । इस धर्म-युद्धमें पारसियोंका भले ही जो भी योगदान हो लेकिन उनकी सज्जनताको हिन्दुस्तान कभी भुला नहीं सकता ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ५-५-१९२१