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मालेगाँवका अपराध

लिया था। नहीं तो आप तिलक महाराजके अयोग्य ठहरेंगे ऐसा कहनेकी मैं आपसे अनुमति चाहता हूँ ।

अगर आपको इस बातका विश्वास हो जाये कि इन पाँच-छ: महीनोंमें हिंदुस्तानने जितनी प्रगति की है उतनी पहले कभी नहीं की थी तो आप इसी वर्ष स्वराज्य ले लेंगे। तभी आप तिलक महाराजकी आत्माको शान्ति प्रदान करेंगे। अभी तो उनकी आत्मा दुःखसे आश्चर्य कर रही होगी कि महाराष्ट्रके लोगोंमें अभीतक ऐसी श्रद्धा क्यों नहीं जागी जिससे वे अपनी तपस्यासे हिन्दुस्तानको उबारें ।

मुझे उम्मीद है कि एक भी व्यक्ति इस तपश्चर्याका व्रत लिए बिना यहाँसे घर नहीं जायेगा । आपके हाथ उठा देनेसे मैं मुग्ध नहीं हो जाऊँगा । मैं तो मूर्तिपूजक हूँ। मुझे तो आपके कार्यकी प्रतिमा चाहिए, स्वर्गीय तिलक महाराजकी नहीं। हम स्वराज्यका सौदा करते हैं। मुझसे जब सिन्धी भाइयोंने पूछा कि यदि हम एक करोड़ रुपया इकट्ठा नहीं कर सके तो ? मैंने जवाब दिया, “तो आप और मैं साथ-साथ सिन्धु नदीमें डूब मरेंगे।” मैं जानता हूँ कि महाराष्ट्रमें पैसा कम है, लेकिन उसमें शक्ति अधिक है। उस शक्तिसे आप चाहें तो धनकी वर्षा कर सकते हैं। इस मण्डपमें, इसी क्षण आप क्या कर सकते हैं? यदि आपके दिलमें एक भी वस्तुके बारेमें आस्था न हो तो आप स्पष्ट कर दें कि "महाराष्ट्रके हम ज्ञानी लोग बेन्थम' और मिलके दर्शनको घोटकर पी जानेके बाद इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि गांधी जो कहता है वह निरा पागलपन है।" मुझे सिर्फ इतना ही दुःख होगा कि असहयोग ज्ञानातीत है; श्रद्धातीत नहीं। लेकिन अपना कर्त्तव्य निश्चित करना आपके हाथमें है। मैं तो इतना ही कहूँगा कि आप जो-कुछ स्वीकार करें उसे हृदयसे स्वीकार करें।

[ गुजरातीसे }

नवजीवन, २२-५-१९२१

३८. मालेगाँवका अपराध

मालेगाँवके असहयोगियोंने जो अपराध किया जान पड़ता है उससे प्रत्येक असहयोगीको शर्म आनी चाहिए।' मालेगाँवके लोगोंने अपना धर्म छोड़ा, कर्म छोड़ा तथा देश और संघर्षको भारी नुकसान पहुँचाया है। हम सुसभ्य और सुसंस्कृत होनेका दावा न करें यह और बात है। कालेमें काला नजर नहीं आता, लेकिन दूधमें काला तुरन्त दिखाई दे जाता है। उसी तरह जब हम साफ दिल होनेका दावा करके काली करतूतें करते हैं तब सारा जगत् हमपर थूकता है । "हम तो धर्मयुद्धमें जुटे हुए हैं", "हमें खुद ही मरना है", "हमें किसीको मारना नहीं है"--ऐसी-ऐसी प्रतिज्ञाएँ करके हम हत्या

१. जैरमी बेन्थम (१७४८-१८३२ ); इंग्लैंडके प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व लेखक जिनके विचारोंका जॉन स्टुअर्ट मिलने विशद विवेचन किया ।

२. जॉन स्टुअर्ट मिल (१८०६-१८६३) ।

३. देखिए "टिप्पणियाँ", ४-५-१९२१ ।