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भेंट। ‘हिन्दू' के प्रतिनिधिसे


वह सुधार-विरोधी कट्टरपंथी हिन्दुओंको निरर्थक रूपसे नाराज किये बिना नहीं रहेगा। केरलकी जनताके आत्मसम्मानके लिए वह हानिकारक इसलिए है कि वह सिख मित्रों द्वारा दिये जानेवाले भोजनको बिना विचारे ग्रहण कर लेती है। इसे एक दान ही माना जा सकता है। जो आसानीसे अपना भोजन स्वयं जुटा सकते हैं और अपने ही रसोईघरोंमें उसका प्रबन्ध कर सकते हैं, ऐसे लोग एक बड़ी तादादमें लंगरसे भोजन लें और न चाहते हुए भी एक अनावश्यक दानको ग्रहण करनेके भागी बनें――इसे मैं आत्मसम्मानके लिए हानिकारक ही मानता हूँ। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि सिख लोग हिन्दू समाजके ही अंग माने जाते हैं या नहीं माने जाते। मैं चाहूँगा कि केरलके लोग अपना इतना आत्मसम्मान बनाये रखें और इतना साहस दिखायें कि यदि सनातनी हिन्दू भी ऐसा कोई भण्डारा खोलना चाहें तो वे नम्रतापूर्वक ऐसी सहायता स्वीकार करनेसे इनकार कर दें। मैं ऐसे भण्डारे या लंगरका औचित्य वहीं मानता हूँ जहाँ अकाल पड़ा हो और लोग भूखों मर रहे हों।

बाहरसे मिलनेवाली आर्थिक सहायताके बारेमें मेरा अभीतक यही मत है कि केरलके लोगोंको न तो ऐसी सहायता माँगनी चाहिए और न मद्रास- अहातेसे बाहरके हिन्दुओं या अन्य लोगोंसे बिना माँगे मिलनेपर भी उसे स्वीकार ही करना चाहिए। यदि उनको आर्थिक सहायताकी इतनी ही जरूरत हो तो वह केवल मद्रास-अहातेके हिन्दुओंसे ही प्राप्त की जानी चाहिए। हाँ, भारत-भरमें फैले हुए केरलके लोग यदि इस संघर्षको ठीक मानते हों तो आन्दोलनके संगठनकर्ताओंको यथासम्भव रुपये-पैसेकी मदद देना उनका कर्तव्य है।

मेरे मित्रोंने मुझसे पूछा था कि क्या मैने यह राय जाहिर की थी कि केरलकी कांग्रेस कमेटीका इस सवालको अपने हाथमें लेना उचित नहीं था। मैंने उनको उत्तर दिया था कि यदि यह प्रश्न उठाया ही जाना था तो फिर कांग्रेस कमेटीका इसमें सबसे आगे बढ़कर दखल देना फर्ज था, क्योंकि वह सभी शान्तिपूर्ण और वैधानिक उपायोंसे छुआछूतको मिटाने के लिए शपथबद्ध है। लेकिन कांग्रेस द्वारा इस सवालको अपने हाथ में लेनेका मतलब यह नहीं हो सकता और न है ही कि सत्याग्रहमें गैर-हिन्दू भी भाग ले सकते हैं या उनको लेना चाहिए। वे सत्याग्रहको केवल अपना नैतिक समर्थन ही प्रदान कर सकते हैं।

मुझे इसमें किसी भी तरहका कोई शक नहीं है कि यदि आन्दोलनके संगठनकर्ता इसी प्रकार शान्तिपूर्ण ढंगसे संघर्ष चलाते रहें, यदि वे मेरी सुझाई हुई सभी मर्यादाओंको स्वीकार कर लें और यदि उनका इरादा संघर्षको अनिश्चित कालतक जारीरखनेका हो तो उनको सफलता अवश्य ही मिलेगी। लेकिन साथ ही इस तथ्यपर मैं जितना भी जोर दूँ कम होगा कि सत्याग्रह हृदय-परिवर्तनकी एक प्रक्रिया है और इसलिए आन्दोलनके संगठनकर्ताओंको अपने प्रतिपक्षियोंके हृदयको परिवर्तित करनेका उद्देश्य सदा सामने रखना चाहिए।

प्रश्न: क्या आपने ‘डेली टेलीग्राफ' के भारत-स्थित संवाददाता द्वारा भेजा हुआ वह तार पढ़ा है, जिसमें बताया गया है कि आपने कांग्रेसके अगले अधिवेशनमें एक नई नीति स्वीकार करानेके लिए पहल करनेका निश्चय किया है? वह नीति यह है