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३८. टिप्पणियाँ

बाल-विवाह और शास्त्र

“त्यागकी मूर्ति" शीर्षक लेखपर एक भाईके पत्रका भावार्थ इस प्रकार है: “आप १५ वर्ष से कम आयुकी लड़कियोंका विवाह करनेके विरुद्ध हैं; लेकिन शास्त्रोंमें तो स्त्री-धर्मको प्राप्त होनेसे पहले ही लड़कियोंका विवाह करनेका आदेश दिया गया है। जो लोग बाल-विवाहोंके विरुद्ध है वे भी शास्त्रोंके नियमोंका पालन करते हैं। ऐसे धर्मसंकट में क्या किया जाना चाहिए? मुझे तो यह धर्मसंकट नहीं जान पड़ता। शास्त्रोंके नामसे प्रसिद्ध पुस्तकोंमें जो कुछ लिखा है वह सब सच ही है और उसमें कुछ भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता, ऐसा कहने अथवा माननेवाले मनुष्यके समक्ष तो पल-पलमें धर्मसंकट उपस्थित होता रहेगा। एक ही श्लोकके अनेकार्थ होते हैं और वे भी परस्पर विरुद्ध तक। इसके अतिरिक्त शास्त्रोंमें कुछ सिद्धान्त अटल होते और कुछ ऐसे जो विशेष काल और क्षेत्र आदिका विचार करके बनाये जाते हैं और उसी हदतक लागू किये जा सकते हैं। उत्तर ध्रुवमें जहाँ छः महीने तक सूर्य अस्त नहीं होता, अगर कोई मनुष्य रह सके तो उसे सन्ध्या किस समय करनी चाहिए? उसे स्नानादिके सम्बन्ध में क्या करना चाहिए? मनुस्मृति में खाद्याखाद्यके अनेक नियमोंका विधान किया गया है। इस समय उनमें से एकका भी पालन नहीं किया जाता। उसके सभी श्लोक एक ही मनुष्यके द्वारा अथवा एक ही समयमें रचे गये हों, यह बात भी नहीं है। इसलिए जो मनुष्य ईश्वरसे डरकर चलना चाहता है और नीति सम्बन्धी नियमोंको भंग भी नहीं करना चाहता उसके सम्मुख तो एक मार्ग यही है कि वह, जो भी बात नीति विरुद्ध दिखाई दे उसको त्याग ही दे। स्वेच्छाचार कभी धर्म हो ही नहीं सकता। हिन्दू धर्म में संयमकी कोई सीमा नहीं बाँधी गई है। जिस बालाको वैराग्य हो गया हो वह क्या करे? स्त्री-धर्मको प्राप्त होनेका अर्थ क्या है? जो अवस्था स्त्री-जातिके लिए सामान्य है उसको प्राप्त होनेपर लड़कीका विवाह किया ही जाना चाहिए, ऐसा आग्रह कैसे किया जा सकता है? स्त्री-धर्मको प्राप्त करनेपर ही विवाह किये जानेकी मर्यादा तो समझमें आती है। हम शास्त्रोंके अर्थके पचड़ेमें पड़कर कदापि अत्याचार नहीं कर सकते। जो हमें मोक्षकी ओर प्रवर्तित करें वे ही शास्त्र हैं; जो हमें संयमको शिक्षा दे वही असली धर्म है। जो मनुष्य बाप-दादोंके कुएँमें डूब मरता है वह मूर्ख ही माना जायगा। अखा भगतने शास्त्रोंको अंधेरा कुआँ माना है। ज्ञानेश्वरने वेदोंको संकुचित बताया है। नरसिंह मेहताने अनुभवको ही

१. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ५५६-६०।

२. १७ वीं शताब्दीके एक गुजराती सन्त कवि।

३. १३ वीं शताब्दीके एक महाराष्ट्रीय सन्त।

४. १५ वीं शताब्दीके गुजराती सन्त कवि।