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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उनके बीच पड़कर शायद ही कुछ सेवा कर सके। सत्याग्रह शुद्ध प्रेमका चिह्न है। दाम्पत्य प्रेम बिलकुल निर्मल हो जानेपर ही पराकाष्ठाको पहुँचता है। तब उसमें विषय-वासनाकी गुंजाइश नहीं रहती और स्वार्थकी तो गन्धतक नहीं हो सकती। इसीसे कवियोंने दाम्पत्य प्रेमका वर्णन करके आत्माकी परमात्माके प्रति लगनको स्वयं पहचाना है और दूसरोंको भी उसका परिचय कराया है। ऐसा प्रेम कदाचित् ही मिल पाता है। विवाहका बीज आसक्तिमें होता है। उसकी उत्पत्ति तीन आसक्तिसे हुई है। तीव्र आसक्ति जब अनासक्तिके रूपमें परिणत हो जाये और जब एक आत्मा शरीर-स्पर्शकी आकांक्षा त्यागकर और उसका खयाल तक न रखकर दूसरी आत्मामें तल्लीन हो जाये, तब उस प्रेममें परमात्माके प्रेमकी कुछ झलक मिल सकती है। यह वर्णन भी बहुत स्थूल है। मैं जिस प्रेमकी कल्पना पाठकोंको कराना चाहता हूँ वह निर्विकार प्रेम है। मैं खुद अभी इतना विकार-शून्य नहीं हुआ हूँ कि उसका यथार्थ वर्णन कर सकूँ। इसलिए मैं जानता हूँ कि जिस भाषाके द्वारा मुझे उस प्रेमका वर्णन करना चाहिए वह मेरी कलमसे नहीं निकल पाती; तथापि मुझे आशा है कि शुद्ध हृदय पाठक उस भाषाकी कल्पना अपने-आप कर लेंगे।

मैं दम्पतीमें जब इतने निर्मल प्रेमको सम्भव मानता हूँ तब वहाँ सत्याग्रह क्या नहीं कर सकता? यह सत्याग्रह वह वस्तु नहीं है जो आजकल सत्याग्रहके नामसे पुकारी जाती है। पार्वतीने शंकरके मुकाबले में सत्याग्रह किया था अर्थात् हजारों वर्ष तक तपस्या की थी। रामचन्द्रने भरतकी बात नहीं मानी तो वे नन्दिग्नाममें जाकर बैठ गये। राम भी सत्य-पथपर थे और भरत भी सत्यपथपर थे। दोनोंने अपना-अपना प्रण रखा। भरत रामकी पादुकाएँ लेकर उनकी पूजा करते हुए योगारूढ़ हुए। रामकी तपश्चर्या में बाह्य आनन्दकी गुंजाइश थी। भरतकी तपश्चर्या अलौकिक थी। रामके लिए भरतको भूल जानेका अवसर था। भरत तो पल-पल राम-नामका ही जप करते थे। इसीसे भगवान दासानुदास बन गये।

यह शुद्धतम सत्याग्रहकी मिसाल है। इसमें दोनोंमें से किसीकी भी जीत नहीं हुई। यदि कोई विजयी कहा ही जाये तो वह भरत है। यदि भरतका जन्म न हुआ होता तो रामकी महिमा भी न हुई होती। यह कहकर तुलसीदासने प्रेमका रहस्य हमारे सामने प्रस्तुत कर दिया है।

यदि पत्र-प्रेषक सज्जन घड़ी भरके लिए स्थूल प्रेमको भूलकर दाम्पत्य-प्रेममें छिपे सूक्ष्म प्रेमको धारण कर सकें――मैं जानता हूँ कि यह प्रयत्नसे नहीं होता,वह तो जब प्रकट होना होता है तब हो जाता है――तो मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि उनकी पत्नी अपने विलायती कपड़े उसी दिन जला देंगी। परन्तु कोई यह शंका न करे कि छोटी-सी बातके लिए मैं इतना बड़ा उपाय क्यों बता रहा हूँ? कोई यह भी न कहे कि मैं तारतम्य ही नहीं समझता। बात यह है कि छोटीसे-छोटी बातें हमारे जीवनमें जो परिवर्तन करती हैं वे जानबूझकर किये गये प्रयासोंसे अथवा बड़े-बड़े चमत्कारोंसे भी घटित नहीं हो सकते।

दम्पतीके बीच सम्भव सत्याग्रहकी बीसों मिसालें मैं अपनी अनुभव-पुस्तकमें से दे सकता हूँ। परन्तु मैं यह भी जानता हूँ कि इन सबका दुरुपयोग भी किया जा सकता