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काठियावाड़ क्या करे?


है। मुझे वर्तमान वातावरण जहरीला मालूम होता है। मैं ऐसे समय इन अनुभवोंकी मिसाल देकर उक्त भाईको, जिन्होंने शुद्ध भावसे प्रश्न किया है, भ्रमित करनेका पाप अपने सिर नहीं लेना चाहता। इसलिए मैं उच्चसे-उच्च स्थिति बताकर उसमें से अपने संकटके निवारणका उचित मार्ग खोजनेका काम उन्हींको सौंपता हूँ।

स्त्रियोंकी स्थिति नाजुक है। उनके सम्बन्धमें उठाये जानेवाले कदमोंमें बल- प्रयोगको गन्ध आ जाती है। हिन्दू जीवन कठिन है। इसीसे वह औरोंकी अपेक्षा अधिक स्वच्छ रह सका है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पतिको केवल वही प्रभाव डालनेका अधिकार है, जो शुद्ध प्रेमके द्वारा डाला जा सकता है। यदि दोनोंमें से कोई एक भी विषय-वासनाको जड़से काट सके तो रास्ता सरल हो जाता है। मेरा दृढ़ मत है कि पुरुषको स्त्रीमें जो खामियाँ दिखाई देती हैं उनकी पूरी-पूरी नहीं तो काफी जवाबदेही पुरुषकी ही है। वही स्त्रीमें सज-धजका मोह पैदा करता है। वही उसे बढ़िया माने जानेवाले कपड़े पहननेको कहता है। फिर स्त्री उनकी आदी हो जाती है; और जब पतिमें परिवर्तन होता है तब वह तत्काल पतिका साथ नहीं दे पाती। इसमें दोष पुरुषका ही है, स्त्रीका नहीं। यह समझकर पुरुषको धीरज रखना लाजिमी है।

यदि हिन्दुस्तानको शान्तिपूर्ण उपायोंसे स्वराज्य मिलना है तो उसमें स्त्रियोंको पूरा-पूरा योग अवश्य देना पड़ेगा। स्त्रियोंको जबतक, विलायती, मिलोंके तथा रेशमी कपड़ोंका मोह बना रहेगा तबतक स्वराज्य दूर ही रहेगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १८-५-१९२४

४०. काठियावाड़ क्या करे?

मैंने गत सप्ताह राजनीतिक परिषद् बुलानेके सम्बन्धमे अपना विचार सम्यक् रूपसे पाठकोंके समक्ष रखा था। परिषद् होगी अथवा नहीं और अगर होगी तो कहाँ होगी, इस बारेमें में कुछ नहीं जानता। मैं तो इतना ही जानता हूँ कि कुछ भाइयोंके मनमें भी, जो मुझसे मिलने आये थे, निराशा आ गई है। वे बड़े सत्याग्रही होनेका दम भरते हैं। मुझे उनको बता देना चाहिए कि सत्याग्रहीके कोषमें निराशा अथवा उसका समानार्थक शब्द होता ही नहीं। मेरी समझमें तो यह बात ही नहीं आती कि उनके मनमें निराशा क्यों आई? उनके विचार तो मुझसे ही मिलते-जुलते थे। लेकिन यदि यह भी मान लें कि वे मेरे तेजसे अभिभूत हो गये थे तो भी उनको उस तेजके प्रभावसे बाहर आनेपर सावधान होने और फिर विचार करनेका अधिकार था। यदि उन्होंने इस तरह विचार किया हो और उन्हें यह लगा हो कि कार्यकर्ताओंकी ओरसे कोई भूल नहीं हुई और शर्ते स्वीकार करनेपर परिषद्की अनुमति देनेका वादा करने के बावजूद दरबारके अनुमति न देनेकी स्थितिमें सत्याग्रह

१. भावनगरके शासक।