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४१. बुनकरोंकी आय

एक भाई दुःखी होकर पत्र लिखते हैं:

इस पत्र-लेखक और इसके समान अन्य शंकाशील भाइयोंके मनको शान्त करनेकी जरूरत है। मैंने जो कुछ लिखा था वह वकील वर्गके समान तीव्र बुद्धिके लोगोंके लिए नहीं था। मैं इस भाईके इस कथनके बावजूद अपने मतमें कोई फेरफार नहीं करना चाहता। मैं जानता हूँ कि पंजाबमें बहुतसे बुनकर दो रुपये रोजसे अधिक कमाते हैं। बम्बईके मदनपुराके कुशल बुनकर तीन रुपये रोज सहज ही कमा लेते हैं। इतना अवश्य है कि वे विदेशी अथवा मिलोंके सूतका प्रयोग करते हैं। यदि वे आलस्यवश हाथ-कते सूतको तानेमें इस्तेमाल करने से इनकार न करें तो उनकी कमाई कम हो जाने की तनिक भी आशंका नहीं है। उक्त बुनकर जितनी कमाई कर पाते हैं उतनी अन्य बुनकर क्यों नहीं कर सकते। हमें इसका उत्तर एक ही मिलेगा कि वे बुनकर बहुत अनुभवी होते हैं। यह बिलकुल सच है; परन्तु एक परिवार दो रुपये रोज कमा सके इसके लिए वर्षोंके अनुभवकी जरूरत नहीं है। मैं तो मानता हूँ कि यदि मनुष्य एक वर्ष तक रविवारको छोड़कर रोज आठ घंटे करघेपर बैठे तो वह जितना चाहिए उतना अनुभव प्राप्त कर सकता है। इतना तो स्पष्ट है कि यदि कोई बुनाईमें सुन्दर आकृतियाँ निकालने की कला तनिक भी सीख लेता है तो इसमें समय बहुत कम लगता है और मजदूरी डेढ़ गुना अथवा इससे भी ज्यादा मिलती है। किनारीको रंगीन करने भरसे मजदूरी बढ़ जाती है। बहुतसे बुनकर केवल अपने हुनरके बलपर अधिक मजदूरी लेते हैं। इसके अतिरिक्त मैंने कमाईको जो यह कल्पना की है वह केवल एक मनुष्यके लिए नहीं है, समस्त परिवारके लिए है।

यदि परिवारके अन्य सदस्य भी कार्यमें मदद करें तो सामान्यतया काम अधिक होता है। कल्पना कीजिए कि एक कुशल बुनकर, उसकी स्त्री और उसका दसवर्षीय बालक बुनाईके काममें लगे हैं। बुनकर अच्छी कपास ले आया और उसने उसकी पूनियाँ बनाकर पास-पड़ौसकी बहनोंको कातने के लिए दे दी। वह उन्हींके काते सूतको बुनता है और बुने कपड़ेको स्वयं ही बेचता है। पति और पत्नी दोनों ही बुनाईके काममें लगते हैं और दोनों मिलकर १२ घंटे काम करते हैं। बालक कुकड़ियाँ भर-भर कर देता है और अन्य प्रकारसे सहायता करता है। इस तरह काम करनेवाले कुटुम्बकी हररोजकी आय सहज ही दो रुपये हो सकती है। जहाँ इतनी आय न हो वहाँ दूसरी जगहोंकी अपेक्षा रहन-सहनका खर्च कम आता होगा। उक्त भाईको आशंका है कि मेरे लेखसे भ्रमित होकर कोई अनुभवहीन मनुष्य बुनाईके काममें न

१. यहाँ पत्र नहीं दिया गया है। पत्र-लेखकने गांधीजीके इस कथनपर शंका को थी कि चरखा कातनेसे मनुष्य प्रतिदिन दो रुपयेसे तीन रुपये तक कमा सकता है और लिखा था कि यदि उनका यह मत ठीक नहीं है, तो वे उसमें सुधार कर लें।