पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाकर निन्दाका पात्र हो जाता है और योग्य मनुष्य दोषमय संविधानका भी सदुपयोग कर सकते हैं, अधिकांशतः यथार्थ है। यह तो स्पष्ट ही है कि स्वयंसेवकोंको चाहिए कि वे किसीको भी पूरी तरह समझाए बिना चार आने लेकर सदस्य न बनायें और यह स्पष्ट है कि चार आने वसूल कर लेनेके अनन्तर उस चार आने देनेवाले व्यक्तिको भूल नहीं जाना चाहिए। ग्राम समितियोंकी स्थापनाका प्रयोजन ही यह है कि ग्रामीण लोगोंका सम्बन्ध कांग्रेसके साथ अखण्ड बना रहे।

देहातोंकी गरीबीको जिन-जिन लोगोंने इस पत्र-लेखककी तरह देखा है उन्हें उसे दूर करने के लिए चरखेके सिवा दूसरा कोई साधन नहीं सूझ सकता; क्योंकि ऐसा कोई दूसरा साधन है ही नहीं। इसीसे जिस हदतक चरखेकी प्रगति होगी उसी हदतक स्वराज्यकी प्रगति मानी जा सकती है। कांग्रेससे वेतन लेना उचित नहीं, यह विचार अभिमान सूचक ही है। बिना वेतनके अधिक सेवक मिल ही नहीं सकते। और यदि वेतन लेनेवाला कोई भी न रहे तो स्वराज्य-तन्त्र आगे नहीं बढ़ सकता। यह भी एक बहम है कि लोग वेतन लेनेवालोंको आदरकी दृष्टिसे नहीं देखते। वेतन लेता हो अथवा न लेता हो यदि कार्यकर्ता जनताकी दिलोजानसे सेवा न करेगा तो उसके प्रति लोगोंका आदरभाव टिक ही नहीं सकता। मैं अनुभवसे कह सकता हूँ कि लोगोंको दिलोजानसे काम करनेवालेको वेतन चुकाना भारस्वरूप नहीं लगेगा। यह सच है कि कांग्रेस कोई बड़ा वेतन नहीं दे सकती। परन्तु इस विषयमें भी कोई सन्देह नहीं है कि वह गरीब सेवकोंको गुजारेके लायक वेतन जरूर दे सकती है। हमें दूसरी जगह वेतन लेकर नौकरी करनेकी अपेक्षा कांग्रेससे वेतन लेकर उसकी नौकरी करनेमें प्रतिष्ठा माननी चाहिए। लोगोंमें सिविल सर्विसका मोह कितना है और वह क्यों है? हमें उससे भी अधिक मोह कांग्रेसकी सेवाका होना चाहिए। जिस प्रकार सिविल सर्विसमें जानेवाला ऊँचे पदोंपर पहुँच सकता है उसी प्रकार कांग्रेसकी सेवा करनेवाला उसका सभापति तक हो सकता है। परन्तु जो इस लालचसे सेवा करेगा वह गिरे बिना नहीं रहेगा। स्व० गोखलेने फग्युसन कालेजको अपने २० वर्ष दिये। उन्हें रायल कमीशन आदिसे भी रुपये मिलते थे। वे फिर भी कालेजसे वेतन लेनेमें अपना गौरव मानते थे। पाठकोंको याद होगा कि यह वेतन ४० रुपये से शुरू होता और अधिकसे-अधिक ७५ रुपये तक जाता है। जबतक कांग्रेसको भी प्राण-प्रणसे काम करनेवाले वैतनिक सेवक न मिलेंगे तबतक उसका काम ठीक तरहसे नहीं चल सकता। जबतक हम यह नहीं मानने लगेंगे कि वेतन लेकर सेवा करना मानास्पद है तबतक हमें अधिक संख्यामें सेवक नहीं मिलेंगे। इस प्रकार प्रतिष्ठा बढ़ानेका सबसे अच्छा रास्ता यह है कि वल्लभभाई स्वयं वेतन लेने लगें। जब मैं सेवा करने लगूँगा तब मैं भी जरूर वैतनिक सेवकोंमें अपना नाम लिखाऊँगा।

वेतन कितना और किस तरह निश्चित किया जाये, सबको एक-सा दिया जाये या नहीं, सेवकोंकी परीक्षा रखी जाये या नहीं, आदि समस्याएँ जरूर खड़ी होती हैं; परन्तु इन्हींको हल करना ही हमारी कार्य-संचालनकी क्षमताकी कसौटी होगी।

अखबारोंकी जो टीका-टिप्पणी की गई है उसपर मैं अपनी राय न दूँगा, क्योंकि गुजरातके अखबारोंसे मेरा बिलकुल परिचय नहीं है। यह महान कार्य मेरे जेल जानेके