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भाषण: बुद्ध जयन्ती समारोहमें

बाद ही शुरू हुआ है। यह तो निश्चित ही है कि पत्रोंका धर्म लोगोंको कार्यकी ओर प्रवृत्त करना है। अब लोगोंको जोश दिलानेकी आवश्यकता बिलकुल नहीं रही है। लोग इस बातको समझ गये हैं कि उन्हें वर्तमान राजनीति बदलनी है और स्वराज्य लेना है। वे रास्ता भी जानने लगे हैं। अभी वे उस रास्तेपर तेजीसे आगे नहीं बढ़ रहे है। पत्रोंको उनकी गति तेज करनेमें ही अपनी शक्ति लगानी चाहिए। इस सम्बन्धमें मतभेद हो ही नहीं सकता।

अन्त्यज भाइयोंको साफ-सुथरा रहनेकी शिक्षा देना भी हमारा काम है। हम जब उनमें आने-जाने लगेंगे तो स्वयं अपने हितकी दृष्टिसे उन्हें साफ-सुथरा रहनेकी शिक्षा भी देंगे। हमें यह समझकर धीरजसे काम लेना चाहिए कि उनकी गन्दगी हमारे पापका फल है। हमने अबतक अन्त्यज भाइयोंको अपना भाई नहीं माना। हमने उन्हें मनुष्यतक नहीं समझा। हम जैसा करते हैं वैसा फल पाते हैं; इससे हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। तथापि इस बातमें कोई सन्देह नहीं कि उनके दोष दूर करने में हमें उनकी मदद करनी चाहिए। वे तो सीधे-सादे लोग हैं। वे जानते हैं कि उनको इन सुधारोंकी जरूरत है। उन्हें हमारी सहायताकी जरूरत है। मैं मानता हूँ कि यदि उन्हें हमारी मदद मिले तो वे हमसे भी आगे बढ़ सकते हैं।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १८-५-१९२४

४३. भाषण: बुद्ध-जयन्ती समारोहमें

बम्बई
१८ मई, १९२४

मेरा विचार है कि मुझे इस सभाकी अध्यक्षता करनेके लिए केवल इस खयालसे बुलाया गया है कि मैं गौतम बुद्ध द्वारा अनुभूत और प्रतिपादित सत्यके प्रचारके लिए बहुतोंकी अपेक्षा अधिक प्रयत्नशील हूँ। मेरा तद्विषयक ज्ञान सर एडविन आर्नोल्डको उस सुन्दर पुस्तक तक ही सीमित है, जो मैंने पहली बार आजसे कोई पैतीस वर्ष पहले पढ़ी थी। यरवदा जेलमें रहते हुए अपनी छोटी-सी कारावास-अवधिमें भी मैंने एक-दो पुस्तक पढ़ी थीं। किन्तु बौद्ध धर्म के महान विद्वान् आचार्य कौसाम्बीका कहना कि “द लाइट ऑफ एशिया" बुद्धके जीवनका एक बहुत धुंधला चित्र ही दे पाती है। उस सुन्दर कवितामें कमसे-कम एक घटना तो

१. मार्च १९२२ से।

२. बुद्ध सोसाइटीके तत्वावधानमें आयोजित बुद्ध-जयन्ती समारोहके अध्यक्ष पदसे दिया गया भाषण। जेलसे रिहाईके बाद यह उनका पहला सार्वजनिक भाषण था। गांधीजीने भाषण पहले से ही लिखकर तैयार कर लिया था। उसका मसविदा उपलब्ध है। समाचारपत्रोंमें इसका पाठ कुछ शाब्दिक परिवर्तनोंके साथ प्रकाशित हुआ था।

३. १८३२-१९०४, संस्कृत साहित्यके अध्येता व अंग्रेज कवि।