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जा चुका है, स्वराज्यवादियोंके साथ कोई समझौता कर लिया जाना चाहिए और उस समझौतेके आधारपर कांग्रेसको परस्पर-विरोधी तत्त्वोंकी संस्था न होकर समतत्त्वोंकी संमठित संस्थाके रूपमें काम कर सकना चाहिए। इसलिए उन्होंने स्वराज्य दलके प्रति परिपूर्ण तटस्थताका रुख अपनाया और साथ ही यह कोशिश भी की कि कांग्रेसकी कार्यकारिणी सत्ता उन लोगोंके हाथमें रहे जो संस्थाकी सारी शक्ति और साधनोंका उपयोग रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा करने में लगाना चाहते हैं। इसी उद्देश्यसे जूनके अन्तमें अहमदाबादमें होनेवाली अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकके लिए उन्होंने कुछ प्रस्तावोंको पेश करनेकी इच्छा जाहिर की। प्रस्तावोंका मंशा कांग्रेसकी प्रातिनिधिक और कार्यकारिणी समितियोंसे स्वराज्य दलके सदस्योंको हटाना ही था। गांधीजी इन समितियोंमें समान तत्त्वोंको ही दाखिल नहीं करना चाहते थे, वे यह भी चाहते थे कि रचनात्मक कार्यक्रमपर तेजीसे अमल किया जा सके। अतः उनके प्रस्तावोंका उद्देश्य “कथनी और करनीमें अभेद स्थापित करना था।” मुख्य प्रस्ताव यह था कि कांग्रेसका हरएक सदस्य जो संस्थाकी किसी प्रातिनिधिक अथवा कार्यकारिणी समितिके लिए चुने जानेका अधिकारी होना चाहता है, कमसे-कम नित्य आधा घंटा सूत काते और अखिल भारतीय खादी मण्डलको प्रतिमास निश्चित परिमाणमें ठीक और समान काता हुआ सूत भेजे। इस प्रकार कांग्रेसका हरएक कर्मठ सदस्य देशकी आर्थिक दुरवस्थाके साथ अपनी अभिन्नता सिद्ध कर सकेगा– एक जन-संगठन होनेके नाते कांग्रेसके सदस्योंसे कमसे-कम इतनी आशा तो की ही जानी चाहिए थी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें उक्त प्रस्ताव किसी बड़े बहुमतसे तय नहीं हुए और जब गांधीजीने देखा कि स्वराज्यवादी दल, जो प्रस्तावका विरोध कर रहा था, पर्याप्त शक्तिशाली है तो उन्होंने स्वयं प्रस्तावका एक संशोधन पेश किया और उसके द्वारा सूत कातनेकी शर्तका पालन न करनेके प्रस्तावमें जो दण्ड सुझाया गया था, उसका उतना अंश रद कर दिया गया। अन्य प्रस्तावोंका भी प्रबल विरोध हुआ और स्वराज्यवादियोंके दृष्टिकोणकी रक्षाकी दृष्टिसे उनमें से दो प्रस्तावोंमें सुधार भी किये गये।

गांधीजीने बताया कि राष्ट्रीय आन्दोलनका नेतृत्व करनेके लिए उक्त प्रस्तावोंको उनकी शर्ते माना जाये। “इसलिए इन चार प्रस्तावोंको जनरलकी जगहके लिए मेरी दरखास्त ही समझिए। इसमें मेरी योग्यता और मर्यादाएँ दोनों आ जाती है।” (पृष्ठ २७४) यद्यपि प्रस्ताव पास हो गया, तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी कार्रवाईके दौरान जो-कुछ हुआ उसने गांधीजीको सोचनेपर बाध्य कर दिया। “यद्यपि मुझे अपने द्वारा प्रस्तुत किये गये चारों प्रस्तावोंपर बहुमत मिला, फिर भी मुझे यह स्वीकार करना ही होगा कि अपनी समझमें तो मेरी हार ही हुई है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी कार्रवाईने मेरी आँखें खोल दी हैं और अब मैं बड़ी आतुरताके साथ अपना हृदय टटोल रहा हूँ।" (पृष्ठ ३४१) गांधीजी इस विचारमें पड़ गये कि जो लोग उनके मूलभूत सिद्धान्तोंकी अवहेलना करते हैं, उनकी तरफ सहयोगका हाथ बढ़ाकर वे ठीक भी कर रहे हैं या नहीं। “मेरे दिलमें यह सवाल बराबर उठता रहा