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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्र०: क्या अस्पृश्यता और अनुपगम्यता-प्रथाके निवारणकी समस्या एक अखिल भारतीय समस्या नहीं है और चूँकि वाइकोम-संघर्ष इन दोनों कुरीतियोंके विरुद्ध छेड़े गये संघर्षोंमें पहला है, इसलिए इसमें हमारा हार जाना क्या सम्बन्धित आम आन्दोलनके लिए घातक सिद्ध नहीं होगा; और यदि ऐसा अन्देशा हो तो क्या इस संघर्ष में हाथ बटाना सभी भारतीयोंका कर्तव्य नहीं हो जाता? वाइकोमके सन्दर्भमें “स्थानीय" शब्दसे क्या अभिप्राय है? यदि बाहरसे सहायता लेनेका अर्थ दबाव डालना और प्रतिपक्षियोंको डराना-धमकाना है और यदि यह तरीका सत्याग्रहके सिद्धान्तोंके प्रतिकूल है तो क्या वाइकोमके पंचमवर्णीय हिन्दू वाइकोमसे बाहरके किसी स्थानसे रुपये-पैसे और स्वयंसेवकोंकी मदद ले सकते हैं? खुद त्रावणकोर रियासतके वे निवासी जो वाइकोममें नहीं रहते, इस संघर्षमें भाग ले सकते हैं या नहीं? यदि वे त्रावणकोर और यहाँतक कि मद्रास अहाते-भरके लोगोंसे उक्त सहायता माँग सकते और स्वीकार कर सकते हैं तो फिर भारत-भर में हिन्दुओंसे क्यों नहीं? सत्याग्रही हिन्दू-सभा और ऐसी ही अन्य संस्थाओंकी मदद लेनेसे इनकार क्यों करें?

उ०: पहले दिये गये उत्तरमें इस प्रश्नका उत्तर आंशिक रूपसे आ ही चुका है। वाइकोम संघर्ष के प्रश्नको इस अर्थमें अखिल भारतीय प्रश्न भी माना जा सकता है कि हिन्दू समाजमें मौजूद एक ही बुराईके तहत देशके प्रत्येक भागमें अछूतोंको सभी कुओं, तालाबों, सड़कों इत्यादिका इस्तेमाल नहीं करने दिया जाता; लेकिन इसके फलस्वरूप स्थानीय रूपसे खड़े होनेवाले हर मसलेपर स्थानीय रूपसे ही संघर्ष किया जाना चाहिए। इन मसलोंको लेकर सारा भारत उठ खड़ा हो या केन्द्रीय संगठन उसके लिए संघर्ष छेड़ दे, यह न तो वांछनीय है और न व्यावहारिक ही। इससे अव्यवस्था और गड़बड़ी फैल जायेगी। इसके परिणाम तो ज्यादा अच्छी तरहसे तभी समझमें आ सकते हैं जब एक ही साथ ऐसे कई संघर्ष छिड़े हुए हों। इसके विपरीत यदि केन्द्रीय संगठन उस तरह अपनी शक्तिका अपव्यय करे तो काफी कमजोर हो जायेगा और फिर स्थानीय जनता बाहरी सहायताके बिना ऐसे मसलोंको हल करनेके लिए आवश्यक शक्ति अपने भीतर उत्पन्न करने में समर्थ न होगी। यदि हर क्षेत्र स्वावलम्बी और आत्म निर्भर बन जाये तो इससे समूचा देश शक्तिशाली बनेगा और उस बड़े संघर्षको छेड़नेकी क्षमता प्राप्त कर लेगा जो सामने दिखाई दे रहा है। वाइकोममें स्थानीय रूपसे समस्या हल कर लेनेसे सारे भारतकी अस्पृश्यताकी समस्या हल नहीं हो जायेगी। पूरा देश इस स्थानीय संघर्षकी उपलब्धियोंका लाभ उठा सकता है, पर यदि इसकी पराजय हो तो वह इसके लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

प्र०: हमारी समझमें यह नहीं आया कि आप वाइकोमके संघर्षमें गैर-हिन्दुओंके भाग लेनेपर रोक क्यों लगाते हैं। खिलाफतका सवाल एक बिलकुल ही धार्मिक मसला था; फिर भी आपने हिन्दुओंसे मुसलमानोंकी सहायता करने के लिए कहा था। हिन्दू और मुसलमान भारत-राष्ट्रके अंग हैं। मुसलमानोंकी मदद करना तब हिन्दुओंका फर्ज इसीलिए माना गया था कि इससे शीघ्र ही स्वराज्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।