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सात

कि क्या असत्यका परिणाम कभी सत्य भी हो सकता है? क्या मैं बुराईके साथ सहयोग नहीं कर रहा हूँ?" (पृष्ठ ३४६) उनकी इस स्वीकारोक्तिसे उनकी आन्तरिक पीड़ाको भली-भाँति समझा जा सकता था। “मेरे आँसू हर किसी बातपर नहीं निकल पड़ते। आँसू बहानेके मौकोंपर भी मैं आँसुओंको पी जानेकी कोशिश करता हूँ। परन्तु इस मौकेपर तो दिलको मजबूत बनानेका पूरा प्रयत्न करते हुए भी मेरे आँसू बह निकले।” (पृष्ठ ३४६) गांधीजीको दुःख इस बातका नहीं हुआ कि उनके प्रस्तावोंका विरोध हुआ बल्कि कार्रवाई जिस गैर-संजीदगीके साथ होती रही, उसपर उन्हें दुःख हुआ।

गांधीजीको लगा कि वे हार गये हैं और उनका सिर झुक गया है, किन्तु फिर भी उन्होंने स्वराज्यवादी दलके साथ यदि सहयोग नहीं तो बिना परस्पर संघर्षके काम कर सकनेके किसी उपायको खोजनेकी पूरी कोशिश की। वे नहीं चाहते थे कि स्वराज्यवादी दलके लोग अपने विश्वासके बावजूद कौंसिलोंसे हट जायें अथवा लोकमतसे डरकर अपने विचार न रखें। ९ अगस्त, १९२४ के अपने पत्रमें उन्होंने मोतीलाल नेहरूको लिखा: “कांग्रेस आपके नियन्त्रणमें आ जाये, इसके लिए मैं आपका रास्ता सुगम बनाने, वास्तवमें उसमें आपको सहायता देनेके लिए तैयार हूँ। . . . आपके कार्यक्रममें शामिल होनेकी बातको छोड़कर आप और जो-कुछ चाहें, मैं करनेको तैयार हूँ।” (पृष्ठ ५४१-४२) १५ अगस्त, १९२४ के एक अन्य पत्रमें उन्होंने स्पष्ट किया: “मैं कौंसिलोंके कार्यक्रमके झमेलेमें अपनेको नहीं डालना चाहता।” (पृष्ठ ५८९) अगर वे कांग्रेसमें रहते हैं तो यह कार्यक्रम कांग्रेससे बाहर रहकर चलाया जाये और यदि स्वराज्यवादी दल कांग्रेसको अपने हाथमें ले ले, तो वे स्वयं लगभग कांग्रेससे हट जायेंगे। १९१५-१९१८ में उनकी जो स्थिति थी, वे उस स्थितिको स्वीकार करनेके लिए तैयार थे। और इसमें उनका मंशा स्वराज्यवादियोंको कमजोर बनानेका नहीं था, यहाँतक कि उन्हें परेशान करनेका भी नहीं था। (पृष्ठ ५८९-९०) उन्हें ऐसा लगता था कि जिन अपरिवर्तनवादियोंने अहमदाबादकी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें कांग्रेसके असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावके प्रति अपनी सैद्धान्तिक दृढ़ता प्रकट की थी, उनके और स्वराज्यवादियोंके बीच दिसम्बरमें होनेवाले कांग्रेसके वार्षिक अधिवेशनमें फिर झगड़ा होगा। “मैं जितना ही सोचता हूँ, मेरी अन्तरात्मा बेलगाँवमें सत्ताके लिए होनेवाली रस्साकशीके खिलाफ उतना ही अधिक विद्रोह करती है।" (पृष्ठ ५८९ ) उन्होंने अपरिवर्तनवादियोंको यह बात समझानेकी बड़ी कोशिश की कि जहाँ-जहाँ आवश्यक हो, वे संस्थाकी कार्यकारिणी समितियाँ स्वराज्यवादियोंको सौंप दें और कांग्रेसको आन्तरिक झगड़ेसे बचायें। उन्होंने उन्हें सलाह दी कि वे स्वयं रचनात्मक कार्यक्रममें जुट जायें, विशेषतः खादी-उत्पादनके कार्यमें पृष्ठ ४७८-८०।

‘यंग इंडिया' और ‘नवजीवन' के स्तम्भोंमें इस बीच गांधीजी अपने पाठकोंसे कातनेका आग्रह बराबर करते ही रहे और देशके विभिन्न भागोंमें खादी सम्बन्धी जो कार्य हो रहा था, उसकी विस्तृत जानकारी पेश करते रहे। उन्होंने सुझाव दिया, कैदियोंको दिन-भर कातनेका काम दिया जा सकता है। राष्ट्रीय शालाओंके शिक्षकों