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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कि जबतक हम सुपरिन्टेन्डेन्टके मनमें यह बात न बैठा दें कि उनसे गलती हुई है तबतक उनसे माफीकी आशा रखना उचित नहीं है और उन्हें सजा देने सम्बन्धी उनकी भूलको मनवानेका रास्ता उपवास नहीं है। यह काम तो केवल खुलकर बातचीतके द्वारा ही सम्भव है और फिर यदि हम सत्याग्रहीके नाते कष्ट-सहन करनेके लिए कटिबद्ध है तो हमारे साथ या हमारे कैदी भाइयोंके साथ अन्याय होने पर उसके विरोधमें उपवास किया ही कैसे जा सकता है? अन्तमें वे मेरी दलीलका मर्म समझ गये और बाकीका काम मेजर जोन्सके सद्भावनापूर्ण शब्दोंसे हो गया। वे उपवास छोड़नेको और दूसरे भाइयोंको भी इसपर राजी करनेके लिए तयार हो गये। मैंने मेजर जोन्ससे अपने दूधमें से थोड़ा-सा दूध उन्हें देनेकी अनुमति माँगी और उन्होंने तुरन्त अनुमति दे दी। भाई देव और दास्तानने दूध ले तो लिया, परन्तु यह कहा कि नहा-धोकर वे दूसरे उपवासी भाइयोंके साथ ही उसे पियेंगे। मेजर जोन्सने आदेश दिया कि सभी उपवासियोंको दुर्बलता दूर होने तक भोजनमें दूध और फल दिया जाये। हमने प्रेमपूर्वक आपसमें हाथ-मिलाये और फिर विदा हो गये। क्षण-भरके लिए तो अधिकारी अपनी अफसरी भूल गये और हम कैदी भी यह बात भूल गये कि हम कैदी हैं। उस समय हम आपसमें ऐसे मित्र ही बन गये थे जो एक पेचीदा गुत्थीको सुलझानेमें लगे हुए थे और आखिरमें वह गुत्थी सुलझ गई; इससे हम सब बड़े प्रसन्न थे। इस प्रकार यह महत्वपूर्ण भूख-हड़ताल समाप्त हुई। मेजर साहबने मेरे सामने स्वीकार किया कि उन्होंने जितनी भूख-हड़ताले देखी हैं, उनमें यह सबसे अधिक दोषरहित थी। उपवास करने वाले कैदियोंको चोरी-छिपे कोई खुराक न दी जा सके, इसके लिए उन्होंने अत्यन्त सावधानी बरती थी और उन्हें इतमीनान था कि सारी लड़ाईके दरम्यान उन लोगोंको कुछ भी खानेको नहीं मिल पाया है। अगर उन्हें मालूम होता कि ये उपवास करनेवाले किस धातुके बने हुए हैं तो उन्हें ऐसी खबरदारी रखनेकी जरूरत ही न पड़ती।

इस घटनाका एक स्थायी परिणाम यह हुआ कि सरकारने इस आशयका आदेश जारी कर दिया कि जेल अधिकारियोंके अपमान अथवा ऐसी ही किसी अत्यन्त गम्भीर उत्तेजनाके प्रसंगके अलावा, उच्च अधिकारियोंकी मंजूरीके बिना कैदियोंको कोड़े लगाने की सजा न दी जाये। निस्सन्देह इसमें सावधानीकी जरूरत थी। जहाँ कुछ मामलोंमें जेल सुपरिन्टेन्डेन्टको काफी अधिकार देना अनिवार्य है, वहाँ जो सजाएँ वापस न ली जा सकती हों उनके बारेमें तो समझदारसे-समझदार सुपरिन्टेन्डेन्ट पर भी उचित अंकुश रखना जरूरी है।

इसमें तो सन्देह ही नहीं कि भाई दास्ताने, देव और दूसरे सत्याग्रहियोंके उपवासके बहुत आश्चर्यजनक और कल्याणकारी परिणाम निकले, क्योंकि उनका हेतु उसमें भ्रमके निहित होते हुए भी बहुत उत्कृष्ट था और उन्होंने उसके लिए जो कदम उठाया वह भी नितान्त निर्दोष था। किन्तु इस शुभ परिणामके बावजूद उस उपवासको तो निन्द्य ही कहना पड़ेगा। किन्तु जो सुपरिणाम निकला वह उपवासकी अपनी प्रभावकारिताके कारण नहीं बल्कि उपवास करनेवालोंके पश्चात्ताप करने और अपने हेतुको गलत मानकर उपवास तोड़ देने के फलस्वरूप निकला। जब खाना और जीना लज्जाजनक बात बन