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विदेशी कपड़े का बहिष्कार करो

मगर मैं विश्वासपूर्वक यह कहनेकी धृष्टता करता हूँ कि तलवारका रास्ता भारतके लिए है ही नहीं। मैं तो यह भविष्यवाणी करनेका दुःसाहस करता हूँ कि यदि भारतने उस राहको पसन्द किया तो उसे दोमें से एक बातके लिए तैयार रहना चाहिए:

(१) या तो पीढ़ियोंतक विदेशी शासन कबूल करना;

(२) या फिर विशुद्ध हिन्दू राज्य या पूरे तौरपर मुसलमानी राज्यको लगभग सदाके लिए स्वीकार कर लेना।

मैं जानता हूँ कि कुछ ऐसे हिन्दू भी है, जो यदि भारतको शुद्ध हिन्दू राज्य न बना सके तो अंग्रेजोंको हर तरहसे खुश करके रहनेको तैयार हैं और मैं यह भी जानता हूँ कि कुछ ऐसे मुसलमान भी हैं, जो तबतक अंग्रेजी राज्यके अधीन रहनेके लिए तैयार हैं जबतक वे भारतमें सोलहों आना मुस्लिम राज्य स्थापित नहीं कर पाते। पर इनकी संख्या थोड़ी है। उनसे मैं कुछ नहीं कहना चाहता। वे रेतमें हल चलाते है तो चलायें। मैं जानता हूँ कि बहुत बड़ी तादाद तो उन लोगोंकी है जो विदेशी आधिपत्यसे ऊब गये हैं और जो भारतको उससे मुक्त कराने के लिए कोई कारगर उपाय खोजनेके लिए बेचैन है। मुझे विश्वास है कि मैं एक न एक दिन लोगोंसे यह मनवा लूँगा कि यदि विचारशील जनसमुदाय सर्वथा अहिंसात्मक साधनसे ही काम ले तो ऐसे स्वराज्यकी प्राप्ति, जिसमें हिन्दू, मुसलमान तथा अन्य मतावलम्बी बराबरके साझेदारोंकी हैसियतसे रह सकें, उनके द्वारा कल्पित अवधिसे पहले ही हो सकती है; और यह भी कि ऐसा स्वराज्य अन्य किसी भाँति नहीं मिल सकता।

परन्तु फिलहाल तो मैं यह मान लेना चाहता हूँ कि कांग्रेस द्वारा अपनाया गया धर्म जैसा है उसे देखते हुए कांग्रेसजन हिंसानुकूल वातावरण तैयार कर ही नहीं सकते और साम्राज्यके मालके निष्फल बहिष्कारसे ऐसा वातावरण जरूर तैयार होगा और इसलिए मैं तो यहाँतक कहता हूँ कि बहिष्कारका यह प्रस्ताव कांग्रेसके सिद्धान्तके खिलाफ है। लेकिन इस बातका निर्णय तो सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है।

अतएव अब मैं पाठकोंका ध्यान दूसरे बहिष्कार अर्थात् विदेशी कपड़ेके बहिष्कारपर केन्द्रित करना चाहता हूँ। मैं नरमदलवालों तथा राष्ट्रवादियों और कांग्रेसजनों, सभीसे कहता हूँ कि यदि वे तमाम विदेशी कपड़े और देशी मिलोंके कपड़े के बजाय सिर्फ हाथसे तैयार की गई खादी ही निजी इस्तेमालमें लायें और यदि वे रोज कुछ समय तक निष्ठापूर्वक खुद चरखा चलायें और अपने-अपने परिवारके हर व्यक्तिको उसके लिए प्रेरित करें तथा यदि वे अपनी शक्ति-भर अपने पड़ोसियोंके घरमें भी चरखे और खद्दरका प्रचलन करायें तो देश एक ही सालके अन्दर विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कर सकता है। जिस प्रकार वे किसी भी कारणसे विदेशी कपड़े का इस्तेमाल न करें, उसी प्रकार हमारी मिलोंके कपड़े का भी इस्तेमाल न करें। विदेशी कपड़े और देशी मिलोंके कपड़ेके निषेधमें जो भेद है, उसे मैं स्पष्ट कर दूँ। विदेशी कपड़ेका बहिष्कार तो सदाके लिए एक परम आवश्यकता है। परन्तु देशी मिलोंके कपड़े के स्थायी और राष्ट्रव्यापी बहिष्कारकी जरूरत नहीं है। लेकिन कपड़ेकी मौजूदा माँगको सिर्फ देशी मिलें