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टिप्पणियाँ


मोटेझोटे और कमजोर सूतके लिए भी प्रति पौंड ४ आनेके हिसाबसे मजदूरी देनी पड़ती थी।

यदि नरमदलीय लोग और कांग्रेसजन केनियाके निर्णयसे क्षुब्ध होकर वहाँके गोरे निवासियोंके सिरपर साम्राज्यके मालके प्रभावहीन बहिष्कार-रूपी अस्त्रसे प्रहार कर सकते है तो फिर वे शान्तचित्त हो जानेपर खादी आन्दोलनको सफल बनानेमें अपनी सारी शक्ति क्यों नहीं लगा सकते और क्यों नहीं इस प्रकार तमाम विदेशी कपड़ेके बहिष्कारको अवश्यम्भावी बना डालते? क्या मुझे यह बात साबित करनेकी जरूरत है कि विदेशी कपड़े के बहिष्कारसे न केवल केनियाके भारतीयोंके दुःख दूर होंगे, बल्कि स्वराज्य भी मिल जायेगा?

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २२-५-१९२४

५४. टिप्पणियाँ

‘एक मुसलमानसे, एक हिन्दूसे’

एक पत्र-लेखकने अथवा दो पत्र-लेखकोंने कुछ समय पहले पत्र लिखकर इस स्तम्भमें एक महत्वपूर्ण प्रश्नका उत्तर माँगा था। लेखकने पत्रमें नीचे अपना नाम नहीं लिखा था और मैं गुमनाम पत्रोंको प्रोत्साहित नहीं करना चाहता; इसलिए मैंने उसे रद्दी कागजोंकी टोकरीमें डाल दिया था। यदि यह पत्र-लेखक (क्योंकि मुझे शक है कि एक ही लेखकने दो नामोंसे पत्र लिखे हैं) सचमुच यह चाहता है कि मैं उसके प्रश्नका उत्तर दूँ तो प्रकाशनके लिए नहीं, वरन् अपनी सदाशयता सिद्ध करनेके लिए, उसे अपना नाम प्रकट करना चाहिए।

मोपलोंकी सहायताके सम्बन्धमें मालवीयजीके विचार

पण्डित मालवीयजीने मोपलोंको सहायता देने के सम्बन्धमें जो कुछ कहा है, उसे पढ़कर पाठकोंको प्रसन्नता होगी। मुझे हिन्दीमें लिखा गया उनका एक पत्र मिला है, जो इस प्रकार है:[१]

मोपला स्त्रियों और बच्चोंको सहायता देनेके बारेमें आपने जो-कुछ लिखा है, मैं उसके प्रत्येक शब्दसे सहमत हूँ।

‘उपकारका बदला साधुतासे देने में बड़ाईको कौनसी बात है। जो अपकार- का बदला साधुतासे देता है, सन्तजन उसे ही साधु कहते हैं। साधु पुरुष तो वही है जो अपकार करनेवालेका भी उपकार करते हैं और ऐसे ही महात्मा धरतीकी शोभा हैं, क्योंकि उन्हींको पाकर धरती समृद्ध होती है।’

  1. १. मूल हिन्दो पत्र उपलब्ध नहीं है, इसलिए उसके अंग्रेजी अनुवादको ही पुन: अनूदित करके दिया जा रहा है।