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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने जो श्लोक उद्धृत किया है उससे कृपया यह निष्कर्ष न निकालें कि मेरी रायमें सभी मोपलोंने हिन्दुओंको क्षति पहुंचाई है। तथापि यह मान भी लें कि सभी मोपलोंने क्षति पहुँचाई है तो भी हमें संकटके समय उनकी सहायता करनी चाहिए। ऐसा आचरण करने में ही हमारे धर्मको शोभा है।

अक्कोधेन जिने कोथं असाधु साधुना जिने
जिने कदरियं दानेन सच्चेनालिकवादिनं॥

अबतक मेरे पास मोपलोंकी सहायताके निमित्त छः सौ रुपये की रकम ही आई है। इसमें से पाँच सौ रुपये तो एक बोहरा सज्जनने दिये हैं। मुझे उम्मीद है कि अन्य सब भाई और बहन भी यथाशक्ति पैसा भजेंगे।[१]

आचार्य गिडवानी

मेरे प्रश्न के उत्तरमें नाभा राज्यके प्रशासकने कृपा करके निम्न उत्तर, जिसपर १२ मई, १९२४ तारीख पड़ी है, भेजा है।
प्रिय महोदय,

आपका ५ मईका पत्र प्राप्त हुआ। मैंने जेलमें आचार्य गिडवानीकी हालतकी जाँच कराई है। प्राप्त जानकारी नीचे लिखे अनुसार है:
श्री गिडवानी जेलके कपड़े पहनते हैं, किन्तु ये कपड़े साफ सुथरे होते हैं। और उनको वे जब धोना चाहते हैं तब उन्हें साबुन दे दिया जाता है। उन्होंने २१ मार्च, १९२४ के बाद कभी उपवास नहीं किया। उनके स्वास्थ्यकी दशा अच्छी है, और वजन १ मन और ३८ सेर है। उन्हें अभीतक वही भोजन मिला है, जो जेलके दूसरे सजायाफ्ता कैदियोंको मिलता है। किन्तु उनको कभी-कभी स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणोंसे दूध भी दिया गया है। मुझे मालूम हुआ है कि लोगोंसे उनकी मुलाकातके सम्बन्धमें रुकावट नहीं डाली जाती। उनसे कुछ दिन हुए उनकी पत्नी और उनके भाई मिलने आये थे, उन्हें उनसे मिलने दिया गया था और उस अवसरपर उनको सभी सुविधाएँ दी गई थीं। जेलके नियमोंके अनुसार छः महीनेमें केवल एक मुलाकात दी जा सकती है।
मैंने खुद जेलमें जाकर देखा है और ऊपर लिखे तथ्योंके बारे में अपनी तसल्ली कर ली है। श्री गिडवानीने मुझसे कुछ सुविधाएँ माँगी थीं, जैसे, वे अपना भोजन स्वयं बना सकें, उन्हें साग-भाजी और थोड़ा घी दिया जाये, तथा कसरत करने की अनुमति दी जाये। मैंने उनके ये अनुरोध मंजूर कर लिये थे। उन्होंने मुझसे जेलके अधिकारियोंके अथवा अन्य किसीके अशिष्ट व्यवहारको
  1. यह अंश २५-५-१९२४ को नवजीवनमें छपे “मोपलोंकी सहायता" शीर्षकसे लिया गया है।