पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/१४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सुधारोंकी[१] एक विशेष कृपा यह भी हुई है कि शराब और नशीली चीजोंकी आमदनी हमारे बच्चों की शिक्षापर ही खर्च की जायेगी। मैं आशा करता हूँ कि गाँवके लोगों और बेचारे ठेकेदारने जिस सुधारका सूत्रपात किया है उनमें उसके लिए जुर्माना और दूसरी तरहके सभी दण्डोंको सहन करनेकी शक्ति आ जायेगी।

खादीके छाते

एक पत्र-लेखक, जो खादीके पक्के भक्त हैं, पूछते हैं कि हमें छातोंके लिए क्या व्यवस्था करनी चाहिए। मैं छातोंको पोशाकमें नहीं गिनता और स्वयं विदेशी छातेका उपयोग करनेमें संकोच नहीं करूँगा। किन्तु मैंने खादी चढ़े छाते देखे हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि खादीको पानी रोकनेवाले मसालेका लेप करके जलरोधी बनाना सम्भव है। यह खर्चीला हो सकता है, किन्तु दृढ़ निश्चयी मनुष्य खर्चकी परवाह नहीं करेगा। मैंने गरीबोंके छाते भी देखे हैं। जेलमें खुलेमें काम करनेवाले वार्डरोंको छोड़कर कैदियोंको छातेका उपयोग करनेकी अनुमति नहीं रहती। हम यरवदा जेलमें बोरीके एक कोनेको दूसरे कोने में घुसा देते थे और उसे ढीला-ढीला सिरपर ओढ़कर उसके द्वारा वर्षासे बड़े कारगर तौरपर अपना ठीक बचाव कर लेते थे।

पूजाके समय रेशमी धोती पहनी जाये या नहीं, पत्र-लेखक इस सम्बन्धमें असमंजसमें पड़ा हुआ है। मेरे लिए तो खादी, विदेशी अथवा स्वदेशी, किसी भी रेशमसे पवित्र है――और कुछ नहीं तो इसलिए कि रेशमका उत्पादन कुछ हजार लोगोंतक ही सीमित है, जबकि सूतका उत्पादन लाखों लोगोंतक फैला हुआ है। किन्तु इस आन्दोलनमें स्वदेश में बनी खादीके उपयोगकी ही अनुमति है। प्रस्तुत प्रसंगमें भी रेशमके स्थानमें उनकी मोटी धोतियाँ पूर्ण उपयोगी बताई जाती है। हाथका कता रेशम आसानीसे नहीं मिल पाता और यदि मिले तो भी यह सन्देह सदा बना रहता है कि रेशमका धागा विदेशी है या देशी।

धर्मका उपहास

दिल्लीसे एक पत्र-लेखक लिखते हैं:――

रोहतक जिलेके रोहद गाँवमें चमारोंके लगभग साठ घर हैं। ये लोग सभी मजदूर हैं और गाँवको जमीनमें उनके कोई मालिकाना हक नहीं हैं। जबतक गाँवके तालाबमें पानी था तबतक वे उसमें से पानी लिया करते थे। किन्तु उसका पानी खतम हो जानेके बाद अब वे कुएँके पानीके लिए जमींदारकी दयाके मुहताज हो गये। जमींदार उन बेचारे अछूतोंको घंटों खड़ा रखते थे, तब कहीं पानी देने की मेहरबानी होती थी। इस परेशानीसे बचनेका कोई उपाय सोचनेके लिए एक समिति बनाई गई, जिसमें एक चमार भी था। उस समितिने तय किया कि चमार पानी खींचनेके लिए एक मालीको रख लें और उसे प्रतिमास १५ रुपया वें। चमार इस बातको मानने जा रहे थे किन्तु अब
 
  1. र्मोलै मॅन्टिग्यु सुधार।