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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तभी फलीभूत होगा जब अपरिवर्तनवादी लोग उन्हें कौंसिलोंमें अपने कार्यक्रमपर अमल करनेके लिए अत्यन्त ईमानदारीके साथ पूरी छूट देंगे और उनके मार्गमें कोई विघ्न उपस्थित नहीं करेंगे।

कौंसिलोंमें कामका तरीका क्या हो, इसके सम्बन्धमें मैं यह कहूँगा कि मैं किसी भी विधायक संस्थामें तभी प्रवेश करूँगा, जब मुझे लगेगा कि सचमुच मैं उसका कोई लाभदायक उपयोग कर सकता हूँ। इसलिए यदि मैं कौंसिल-प्रवेश करूँ तो अवरोधको नीतिका पालन करनेके बजाय कांग्रेसके रचनात्मक कार्यक्रमको बल देनेकी कोशिश करूँगा। अतएव मैं वहाँ ऐसे प्रस्ताव पेश करना चाहूँगा जिनके अनुसार केन्द्रीय या प्रान्तीय सरकारके लिए यथाप्रसंग यह आवश्यक हो कि वह:

(१) जो कपड़ा खरीदे वह हाथ-कते सूतसे हाथ बुनी खादी ही हो;
(२) विदेशी कपड़ेपर कसकर चुँगी लगाये।
(३) शराब और अफीम वगैरह मादक पदार्थोसे प्राप्त होनेवाले राजस्वको

समाप्त कर दे, और

(४) सेनापर होनेवाले खर्चमें कमसे-कम उतनी कमी करे जितनी कमी शराब और मादक पदार्थोंसे प्राप्त होनेवाले राजस्वको समाप्त कर देनेसे सरकारी आयमें हो गई है।

यदि विधायक संस्थाओं द्वारा स्वीकृत हो जानेपर भी सरकार उन प्रस्तावोंपर अमल न करे तो मैं उसे आमन्त्रित करूँगा कि वह उन संस्थाओंको भंग कर दे और उसी विशेष मुद्देके आधारपर फिरसे निर्वाचन कराये। यदि तब भी सरकार उन संस्थाओंको भंग न करे तो मैं अपना पद त्याग दूँगा और देशको सविनय अवज्ञाके लिए तैयार करूँगा। जब वह अवस्था आ जायेगी तो स्वराज्यवादी लोग देखेंगे कि मैं उनके साथ और उनके अधीन काम करनेको तैयार हूँ।

सविनय अवज्ञाकी पात्रताकी मेरी कसौटी अब भी वही है जो पहले थी। इस परीक्षा-कालतक के लिए मैं अपरिवर्तनवादियोंको सलाह दूँगा कि स्वराज्यवादी लोग क्या कर या कह रहे हैं, इसकी चिन्ता न करके वे पूरी शक्ति और एकाग्रतासे रचनात्मक कार्यक्रमपर अमल करें और अपनी ही निष्ठाको चरितार्थ करें। खादी और राष्ट्रीय शालाओंका ही काम इतना बड़ा है कि बिना किसी दिखावेके, चुपचाप ईमानदारीसे काम करनेमें विश्वास रखनेवाले जितने कार्यकर्ता मिल सकते हों, उसमें खप सकते हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकताकी समस्या भी ऐसी ही है, जिसमें कार्यकर्ताओंका अपनी पूरी शक्ति और आस्थासे काम करना अनिवार्य होगा। जिस प्रकार परिवर्तनवादी अपने कौंसिल-प्रवेशका औचित्य परिणामोंसे ही सिद्ध कर सकते हैं, उसी प्रकार अपरिवर्तनवादी लोग भी रचनात्मक कार्यक्रमको कार्यान्वित करनेकी अपनी लगनके परिणाम सामने पेश करके ही कौंसिल-प्रवेशके प्रति अपने विरोधका औचित्य सिद्ध कर सकते हैं।

एक तरहसे अपरिवर्तनवादी ज्यादा अच्छी स्थितिमें है; क्योंकि वे परिवर्तनवादियोंका भी सहयोग प्राप्त कर सकते हैं। परिवर्तनवादियोंने रचनात्मक कार्यक्रममें अपना