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५९. पत्र: जी० वी० सुब्बारावको

२४ मई, १९२४


प्रिय श्री सुब्बाराव,

अपने पुत्र और श्री दासके जरिये श्रीयुत अरविन्द घोषके[१] विचार [मैंने जान लिये हैं]। मेरा पुत्र उनसे विशेष तौरपर मिला था। मैं इस बातसे सहमत हूँ कि हमारा आधार आध्यात्मिक होना चाहिए और मैं अपनी सभी गतिविधियोंको अपनी अल्पमतिके अनुसार आध्यात्मिक दृष्टिको सामने रखकर ही चलानेका प्रयत्न कर रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ३६२३) की फोटो-नकलसे।

६०. पत्र: अली हसनको[२]

अन्धेरी
२४ मई, १९२४


प्रिय श्री हसन,

पत्रके लिए धन्यवाद। मैं आपकी इस रायसे सहमत नहीं हूँ कि असहयोगका काम करनेसे मुसलमानोंने कुछ खोया है। मैं यह बात भी नहीं[३] मानता कि शासन चलानेकी योग्यता मुसलमानोंमें हिन्दुओंसे ज्यादा है। आम सवालके बारे में मेरे पूरे खयालात आपको समय-समयपर लिखे गये मेरे लेखोंमें मिल जायेंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी समाचारपत्र की कतरन (एस० एन० १०४६९) की माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. सुप्रसिद्ध दार्शनिक।
  2. यह पटनाके वैरिस्टर श्री अलो हसनकी १५ मई, १९२४ की खुली चिट्ठीके उत्तरमें लिखा गया था। श्री हसनने कहा था कि असहयोग आन्दोलनने मुसलमानोंको और अलीगढ़ विश्वविद्यालय-जैसी उनकी संस्थाओंको बिलकुल चौपट कर दिया है। उन्होंने गांधीजीसे अनुरोध किया था कि वे आन्दोलन बन्द करके हिन्दुओंसे मुसलमानोंके साथ ज्यादा अच्छी तरह पेश आने और यह स्वीकार कर लेनेके लिए कहें कि वे आमतौरपर हिन्दुओंसे श्रेष्ठ होते हैं। अली हसनने यह पत्र प्रकाशनके लिए न्यू इंडियाको भेज दिया था।
  3. यहाँ भूलसे ‘नहीं’ शब्द छूट गया था। इसका स्पष्टीकरण गांधीजीने अपने एक लेखमें किया है। देखिए “टिप्पणियाँ”, १०-७-१९२४ उप-शीर्षक “बेहतर प्रशासक कौन है?”।