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६१. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

वैशाख बदी ६
शनिवार [२४ मई, १९२४][१]


भाई श्री घनश्यामदासजी,

महार लोग जो यहाँ रहते हैं वे मुझे कहते हैं कि आपने उन लोगोंको रू. ३०,००० मंदीर और वसती-गृह बनानेके लीये देनेका कहा है यदि मैं उसमें सम्मत हुँ तो क्या आपने उन लोगोंसे ऐसा कुछ कहा है? उनके नेताका नाम श्री भोंसले है।

आपका,
मोहनदास गांधी


[पुनश्च]

उत्तर साबरमती भेजीयेगा। मैं गुरुवारके रोज वहाँ पहुँच जाऊँगा।
मूल हिन्दी पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०४६) से।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

६२. मेरी प्रार्थना

आगामी सप्ताहमें[२] सत्याग्रह आश्रममें पहुँच चुकूँगा। मुझे खेदके साथ लिखना पड़ता है कि अभी मुझमें नारोंको सहन करने, सभाओंमें जाने और भाषण देनेकी शक्ति नहीं आई है। घूमना-फिरना भी एक निश्चित सीमातक ही हो सकता है। ऐसी स्थितिमें मैं बहुतसे भाइयोंसे मिल सकता हूँ इसकी आशा फिलहाल मुझे और उन्हें दोनोंको छोड़ ही देनी चाहिए। मैं जानता हूँ कि बहुतसे भाई और बहनें मुझसे मिलने के लिए आतुर हैं। जितने वे मुझसे मिलनेके लिए आतुर है उतना ही मैं भी उनसे मिलनेको आतुर हूँ। पर फिलहाल हमें संयमसे काम लेना पड़ेगा। इसलिए सब भाइयों और बहनोंको अभी यही समझना चाहिए कि मैंने गुजरातमें प्रवेश ही नहीं किया है। मैं जिस तरह जलवायु-परिवर्तनके लिए जुहू[३] गया था उसी तरह सभी यह समझें कि मैं जलवायु-परिवर्तनके लिए आश्रममें आया हूँ। यदि सब भाई और बहन मुझपर इतनी दया करेंगे तो मैं कुछ शान्ति प्राप्त कर सकूँगा और मेरे जिम्मे जो

 
  1. यह पत्र गांधीजीने जुहूसे लिखा था। १९२४ में वैशाख वदो ६, २४ मईको पड़ी थी।
  2. गांधीजी १० मार्च, १९२२ को गिरफ्तार किये गये थे और २९ मई, १९२४ को आश्रममें वापस पहुँचे थे।
  3. परवदा जेलसे रिहा होनेके बाद वे ११ मार्चसे २८ मई तक बम्बईके जुहू उपनगरमें ठहरे थे।