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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


काम है उनका बोझ उठा सकूँगा। मुझमें जितनी शक्ति है वह लगभग सब ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ का सम्पादन करने में लग जाती है।[१] जो शक्ति बच रहती है उसमें मैं कदाचित पत्र-व्यवहार पूरा कर सकूँ। मैं सोमवार और बुधवारको तो मौनव्रतका पालन कर ही रहा हूँ।[२] ये दोनों दिन मैं उक्त पत्रोंके लिए लेख लिखनेमें लगाता हूँ। इसीलिए मैं इन दिनोंमें किसीसे भी मिलना नहीं चाहता। मैंने अन्य दिनोंमें जुहूकी तरह लोगोंसे मिलने-जुलने के लिए प्रतिदिन शामको ४ बजे से ६ बजेतक का समय रखा है। अन्य दिनों में भी मैं सुबहके वक्त मौन ही रखना चाहता हूँ। यदि मैं ऐसा न करूँ, तो जो लोग अपने आप सुबह मुझसे मिलने चले आते हैं उन्हें निराश नहीं कर सकता और फिर उस हदतक मैं अपना काम पूरा नहीं कर सकता।

मैं इस नियमका दृढ़तापूर्वक पालन जुलाई मासतक तो करना ही चाहता हूँ। उसके बादका कार्यक्रम मेरी तबीयत और कामकी कमी-बेशीपर निर्भर होगा।

मेरी यह प्रार्थना तो मेरे शारीरिक स्वास्थ्यकी दृष्टिसे है।

मेरी दूसरी प्रार्थना अपने देशके कार्यको लेकर है। मेरे लिए बहुत-कुछ करना बाकी है। मैं इस विषयमें ‘नवजीवन’ में चर्चा कर रहा हूँ। लेकिन एक बात तो मैं माँगना ही चाहता हूँ। क्या मेरे भाग्यमें अब भी गुजरातियों के शरीरोंपर विदेशी वस्त्र देखना लिखा है? क्या गुजरातको खादीमय देखने का अवसर नहीं आयेगा? वल्लभभाईने दस लाख रुपयेकी थैली देने की योजना बनाई है। क्या वे गुजरातको खादीमय करनेकी योजना नहीं बनायेंगे? “गुजरात आपको एक करोड़ रुपया दे तो आप इसे पसन्द करेंगे अथवा आप गुजरातको खादीमय बनाने की बात पसन्द करेंगे?” यदि कोई मुझे यह पूछे तो मैं तुरन्त उत्तर दूँगा कि मैं गुजरातसे एक करोड़ रुपया लेनेकी अपेक्षा उसको खादीमय बनानेकी बात ज्यादा पसन्द करूँगा।

मैं बम्बईसे अपनी रवानगीका दिन नहीं बताना चाहता। मैं चाहता हूँ कि कोई भी इसकी जिज्ञासा न रखे और यदि लोगोंको इसका पता लग जाये तो वे स्टेशनपर झुण्डके-झुण्ड आकर खड़े न हों। यदि सब लोग स्टेशनपर आनेकी अपेक्षा सूत कातनेमें जुटे रहें तो कितना सूत तैयार हो सकता है? यदि हम अपने बचे हुए समयका आधा भाग भी सूत कातने में लगायें तो हिन्दुस्तानकी जरूरतके योग्य सूत खेल-खेलमें तैयार हो जाये।

सीधा हिसाब

हमारी कपड़े की जरूरत प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष १३ गज होती है। मान लीजिए, इतने कपड़ेका वजन तीन सेर हुआ। यदि प्रत्येक मनुष्य रोज आधा घंटा काते तो साल-भरमें इतना सूत आसानीसे तैयार किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि

  1. जेलसे आनेके बाद गांधीजीने अप्रैल, १९२४ के पहले सप्ताहमें उक्त दोनों साप्ताहिक पत्रोंका सम्पादन-भार सम्भाला था।
  2. गांधीजीने १७ मार्च, १९२४ से हर सोमवारको और ५ अप्रैल १९२४ से हर बुधको मौन रखना शुरू किया था।