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ब्रह्मचर्य


यदि आधी आबादी केवल एक घंटे ही सूत काते तो सारे देशकी आवश्यकता पूरी करने लायक सूत कत जाये। आशा है कि ये भाई और बहन स्टेशनपर आने का कष्ट उठाने- की अपेक्षा अपने मनको वशमें रखकर उतना समय सूत कातने में लगायेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-५-१९२४

६३. ब्रह्मचर्य

इस विषयपर लिखना आसान नहीं है। लेकिन इस विषयमें मेरा निजी अनुभव इतना विशाल है कि इच्छा बनी रहती है कि कुछ बातें पाठकोंके सामने रखूँ। मेरे नाम आये हुए कुछ पत्रोंने मेरी इस इच्छाको और भी तीव्र कर दिया है।

एक भाई पूछते हैं:
ब्रह्मचर्यका अर्थ क्या है? क्या उसका पूर्ण पालन सम्भव है? अगर सम्भव हो तो क्या आप उसका पूर्ण पालन करते हैं?

ब्रह्मचर्यका पूरा और ठीक अर्थ तो ब्रह्मकी खोज है। ब्रह्म सबमें बसता है और इसलिए अन्तर्मुख होनेसे तथा उससे उत्पन्न ज्ञानके सहारे उसकी खोज की जा सकती है। यह अन्तर्जान इन्द्रियोंके सम्पूर्ण संयमके बिना असम्भव है। इस प्रकार ब्रह्मचर्यका अर्थ है सब इन्द्रियोंका हर समय और हर जगह मन, वचन और कर्मसे संयम।

जो स्त्री या पुरुष ऐसे ब्रह्मचर्यका पूर्ण पालन करता है वह सर्वथा विकार रहित होता है। इसलिए ऐसा व्यक्ति ईश्वरके निकट रहता है और ईश्वर-जैसा ही होता है।

मुझे जरा भी शंका नहीं कि इस प्रकारके ब्रह्मचर्यका मन, वचन और कर्मसे पूरी तरह पालन करना सम्भव है। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि मैं ब्रह्मचर्यकी इस पूर्ण अवस्थातक अभी पहुँच नहीं पाया हूँ। किन्तु मैं उस अवस्थातक पहुँचनेका प्रयत्न निरन्तर करता रहता हूँ और मैंने इस शरीरके द्वारा उस स्थितितक पहुँचनेकी आशा छोड़ी नहीं है। मैंने कायापर तो काबू पा लिया है। मैं जाग्रत अवस्थामें सावधान रह सकता हूँ। मैं वाणीमें संयमका पालन करना भी ठीक-ठीक सीख गया हूँ। किन्तु अभी विचारोंपर काबू पाना बहुत कुछ बाकी है। मेरे मनमें जिस समय जिस बातका विचार करना हो उस समय उसके सिवा दूसरे विचार भी आते हैं। इससे विचारोंमें परस्पर द्वन्द्व चला ही करता है।

फिर भी मैं जाग्रत अवस्थामें अपने विचारोंका एक-दूसरेसे टकराना रोक सकता हूँ। मेरी ऐसी स्थिति कही जा सकती है कि गन्दे विचार मेरे मनमें कभी नहीं आ पाते। परन्तु निद्रावस्थामें विचारोंपर मेरा यह नियन्त्रण कम होता है। नींदमें अनेक प्रकारके विचार आते हैं; अकल्पित सपने भी दिखते हैं और कभी-कभी इसी देहसे की हुई क्रियाओंकी वासना भी जाग्रत होती है। वे विचार जब गन्दे होते हैं तब स्वप्नदोष भी हो जाता है। यह स्थिति विकारी जीवकी ही हो सकती है।