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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यभिचारी कहता है और कृष्ण उसकी गालियाँ खाकर उसकी ओरसे दहेज[१] देनेका इन्तजाम करते हैं।

यह सब किस तरह होता होगा—यह बात शुकदेव-जैसे आजन्म ब्रह्मचारी ही जान सकते हैं। गुजरातके आधुनिक इतिहासमें तो एक विशेषण “प्याज चोर” है, जिसका प्रयोग मैंने श्री मोहनलाल पण्ड्याके लिए किया है। वह गोपियोंकी गालियोंसे कुछ मिलता-जुलता है। मैं पाठकोंको यह बात बता ही दूँ कि सत्याग्रही गालियोंकी सूची माँगनेवाले सज्जन भावनगरके ही हैं। मैं आशा करता हूँ कि मैंने गालियोंके जो नमूने पेश किये हैं उनके अतिरिक्त गालियाँ वे खुद बना लेंगे। यदि भावनगरके निवासी यह सबक सीख ले तो मुझे निश्चय है कि वे अब भी भावनगरमें बिना शर्त काठियावाड़ राजकीय परिषद् कर सकते हैं। परन्तु

“सतनो मारग छे शूरानो, नहिं कायरनु काम जोने।”[२]
[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-५-१९२४

६६. “एक मुस्लिम”

किसी भाईने “एक मुस्लिम” के नामसे वीसनगरके हिन्दू-मुस्लिम फसादके सम्बन्धमें एक गुमनाम पत्र भेजा है। इसके कुछ तथ्य प्रकाशित करने योग्य हो सकते हैं लेकिन चूंकि मैं गुमनाम पत्रोंको प्रोत्साहन नहीं देना चाहता और गुमनाम पत्रमें दिये गये तथ्योंकी सचाईके बारेमें सदा सन्देह रहता है; इसलिए मैं इस पत्रके विवरणको प्रकाशित नहीं कर सकता। यदि ये भाई यह चाहते हों कि उनका भेजा हुआ विवरण प्रकाशित किया जाये तो उन्हें ऐसा पत्र, जिसके तथ्य प्रमाणित किये जा सकें फिर लिख भेजना चाहिए, क्योंकि उनका गुमनाम पत्र फाड़ दिया गया है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-५-१९२४
 
  1. पुत्रोंके पुत्र-प्रसवके अवसरपर नरसिंह मेहताके पास दामाद-पक्षको भेंट देनेके लिए कुछ भी नहीं था। इस परम्पराको उनकी ओरसे स्वयं कृष्णने पूरा किया।
  2. अठारहवीं सदीके गुजराती कवि प्रीतमदासके गीतकी प्रथम पंक्तिका रूपान्तर।