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६८. वसन्त विजय

कविने[१] पाण्डुको मारकर तथा माद्रीको चितामें जलाकर वसन्तकी विजयका गान गाया है आनन्दशंकरभाईने[२] ‘वसन्त’के चैत्रमासके अंकमें कुछ इसी तरहका हिंसक विजय-गान गानेका प्रयत्न किया है। यह प्रयत्न आनन्दशंकरभाईने मिलके कपड़ेके सम्बन्धमें मेरे कुछ विचारोंके बारेमें कल्पना दौड़ाकर किया है। यदि इसमें उन्हें सफलता मिल गई तो बेचारी खादी कहींकी नहीं रहेगी। इसलिए हम ऐसी हिंसक विजयको रोकना अपना धर्म समझते हैं।

पाठक जानते हैं कि मैं कदाचित् ही किसी पत्र अथवा व्यक्तिकी टीका करता हूँ। मुझे इस तरहकी टीका मिथ्या जान पड़ती है और उससे व्यर्थ वाद-विवाद बढ़ता है तथा कभी-कभी द्वेषभाव भी उत्पन्न होता है। मैं आनन्दशंकरभाईके लेखोंके सम्बन्धमें निर्भय रहता हूँ। उनके और मेरे बीच मतभेद हो सकता है लेकिन गलतफहमी नहीं हो सकती। टिप्पणियाँ लिखते समय एक साथीने मुझे ‘वसन्त’ की उक्त टिप्पणी दिखाई। इसलिए मैं इसका उत्तर देनेका अपना लोभ-संवरण नहीं कर सकता। लेकिन इससे पाठक यह न समझें कि ‘वसन्त’ से हमेशा ऐसी नोंक-झोंक चलती रहेगी। मेरा कर्तव्य अपने विचारोंको जनताके सामने रखना और उत्पन्न शंकाओंका परोक्ष रूपसे समाधान करना है। मैं अपने आपको सदा सबसे पराजित हुआ ही मानता हूँ। मुझे लोगोंको तर्कसे भी समझानेका आग्रह कभी नहीं रहा और मैंने अनेक बार अनुभव किया है कि अधूरे मनुष्यके अधूरे विचारोंको बेचारी अधूरी भाषा पूरी तरह कैसे व्यक्त कर सकती है। फिर यदि अपूर्णताकी इस त्रिपुटीमें पाठकका उतावलापन और विरोध भी आ मिलें तो पाठकको सहज समझनेकी शक्ति और भी कम हो जाती है। ऐसी स्थितिमें कम बोलना और कार्यको ही अपना प्रभाव करने देना उचित होता है। मैं अपनी इस मान्यताके कारण वाद-विवादमें नहीं पड़ता और इसीलिए मुझे ज्यादा अखबार पढ़नेकी जरूरत भी नहीं रहती।

‘वसन्त’ की यह टिप्पणी ही मेरे इस कथनका सुन्दर उदाहरण है। यदि आनन्दशंकरभाई मेरे विचारोंको पूरी तरह समझ सके होते तो उन्हें कुछ भी लिखनेकी जरूरत न रहती अथवा यदि रहती तो भी वे खादीके एकदेशीय प्रचारका सहर्ष स्वागत करते और इस तरह मेरे और गुजरातके कार्य एवं स्वराज्यके मार्गको सरल करते। लेकिन वे ऐसा कैसे समझ सकते हैं? मैंने इस सम्बन्धमें आगे और पीछे क्या लिखा है, इसे आनन्दशंकरभाई अथवा कोई भी क्यों पढ़े? जो कुछ पढ़ा अथवा देखा उसीके आधारपर अपना निर्णय दे डाला। मैं इस स्थितिको जानने के बावजूद लिखता जा रहा हूँ, इसमें दोष मेरा ही है। अगर किसीको कुछ लिखना ही हो तो

 
  1. मणिशंकर भट्टको “वसन्त विजय” कविता महाभारतको कथाके आधारपर लिखी गई थी।
  2. आनन्दशंकर बापुभाई ध्रुव।
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