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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काएँ बाँटना बन्द हो गया। इसके बाद मेरा स्वास्थ्य गिर गया, अतः मेरा तीसरे दर्जेमें सफर करनेका सुख समाप्त हो गया और उसके साथ-साथ उसका दुःख भी। परन्तु उसकी मीठी याद मुझे अभी बनी हुई है और मैं उसे फिर ताजी करनेकी उम्मीद रखता हूँ।

यह आवश्यक है कि हरएक स्वयंसेवक पत्रिकाएँ बाँटे और पढ़कर सुनाये। उसके साथ ही झाड़ूका प्रयोग भी करना चाहिए। थूकदानीको मुँहसे लगा देनेका काम कठिन है। इसमें मार खानी पड़ सकती है और फिर भी सम्भव है कि मुसाफिर उसमें थूकनेसे इनकार कर दे। झाडूका प्रयोग आवश्यक है। स्वयंसेवक मुसाफिरोंको डिब्बेमें कूड़ा-कचरा न डालनेके लिए भी समझायें। यदि वहाँ फिर भी कूड़ा-कचरा हो जाये तो वे उसे झाडूसे प्रेमपूर्वक साफ कर दें। थूकदानीके इस्तेमालसे एक तरहकी गन्दगीकी जगह दूसरी तरहकी गन्दगी फैलनेका अन्देशा है। थूकदानी हर दफा थूकनेके बाद ठीक तरहसे साफ की जानी चाहिए। थूकदानी भी ऐसी हो जिसके भीतर जोड़ न हो, जो जंग न खाये और आकारमें बड़ी हो। मैं तो बहुत-सा कागज साथ रखता था। जहाँ किसीने थूका हो वहाँ कागजसे साफ करनेसे एक तो हाथ खराब नहीं होता और दूसरे उस जगहकी सफाई भी अच्छी तरह हो जाती है। फिर यदि हाथ धोना चाहें तो धो भी सकते हैं। ऐसा करनेसे दूसरे थूकनेवाले मिन्दा होते है और कम थूकते हैं। खेदकी बात तो यह है कि स्वयंसेवक स्वयं सलीका नहीं बरतते और सदा सफाईके नियमोंका पालन नहीं करते। हम लोगोंमें दूसरोंको सुविधाका खयाल बहुत ही कम दिखाई देता है। इसीलिए रेलमें, जहाजमें, हम जहाँ भी जायें वहाँ, हमें बेहद गन्दगी दिखाई देती है। यह बात तो तभी सुधर सकती है जब हमें बचपनसे ही सफाई-सुथराईके नियमोंकी शिक्षा दी जाये और हम यह समझें कि उनका पालन किया ही जाना चाहिए। पाठकोंको शायद यह मालूम न होगा कि रेलके डिब्बोंमें इस तरह गन्दगी करना रेलके कानूनके अनुसार अपराध है। परन्तु इसके लिए किसीपर मुकदमा नहीं चलाया जाता, क्योंकि जुर्म करनेवालोंकी संख्या बहुत और करनेवालोंकी बहुत कम। इसीसे यह कहा जाता है कि जिस कानूनको बहुसंख्यक लोग मानें उसीको थोड़े लोगोंके विरोधके करने पर भी मनवाया जा सकता है। इसका अर्थ यही है कि कानूनके लिए अनुकूल वातावरणकी आवश्यकता है। विशेष अर्थ यह हुआ कि बहुतेरे कानून निरर्थक होते हैं। वातावरण तैयार हो जाने के बाद अल्पसंख्यक खुद-ब-खुद रिवाजको देखकर उसके अनुसार चलने लगते हैं।

“लोकप्रिय”का अर्थ

एक शिक्षक पत्रमें लिखते हैं:[१]

“लोकप्रिय” का अर्थ तो जो लेखकने किया है वही मैने अपने लेखमें[२] माना है। मैंने सिद्धान्तका अनुसरण करते हुए अपना विचार प्रकट किया है और उसके अनुसार

 
  1. यहाँ नहीं दिया गया है।
  2. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ४०३-५।