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७४. पत्र: वा० गो० देसाईको

वैशाख बदी १० [२८ मई, १९२४]


भाईश्री वालजी,

अभयचन्दभाईका पत्र आया। इसमें उन्होंने लिखा है कि वे जिस नौकरीके लिए इच्छुक है उसके मिलनेकी बहुत सम्भावना है। मैं देखता हूँ कि “रेंटिया संगीत[१]” में तुम्हारी टिप्पणी रह गई। इससे यह बात मेरी समझमें आ गई है कि प्रूफ स्वयं देखनेका तुम्हारा आग्रह कितना ठीक है। साथ ही साथ मुझे बेचारे स्वामीके[२] कन्धोंपर कामका भारी बोझा देखकर तरस भी आता है। इस अवसरपर उनके पास उनकी सहायता करने के लिए महादेव भी नहीं है। परन्तु तुम तो अशुद्धियोंकी ओर मेरा ध्यान आकृष्ट करते ही रहो। मेरी इच्छा तो यह है कि तुम अशुद्धियोंकी सूची प्रति सप्ताह मेरे पास भेजो ताकि मैं उसे प्रकाशित कर सकूँ। परन्तु तुम्हें यदि ऐसा करना अच्छा न लगे तो उसे मेरे अवलोकनार्थ तो भेजो ही। आज “एक्साईटमेंट” के कारण मुझे ज्वर आ गया है। यहाँ “एक्साईटमेंट” के लिए गुजराती शब्द क्या होगा?

मोहनदासके वन्देमातरम्


वा० गो० देसाई
स्टलिंग कैसिल
शिमला

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६००९) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : वा० गो० देसाई

 
  1. यह लेख २५-५-१९२४ के नवजीवनमें “रेंटियानो स्वाध्याय” शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था। देखिए “नित्य कताई”, २५-५-१९२४।
  2. स्वामी आनन्द।