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हिन्दू-मुस्लिम तनाव: कारण और उपचार

सामने बकरी बन जाता है। हरएक गाँवको चाहिए कि वह अपने शेरदिल व्यक्तियोंको खोज निकाले।

गुंडे

गुंडोंको दोष देना भूल है। गुंडे गुंडागर्दी तभी करते हैं जब हम उनके अनुकूल वातावरणका निर्माण कर देते हैं। १९२१ में[१] युवराजके आगमनके दिन बम्बईमें जो कुछ हुआ, उसे मैंने खुद अपनी आँखोंसे देखा है। बीज हमने बोये थे, फसल गुंडोंने काटी। उनकी पीठपर हमारे आदमियोंका हाथ था। जिस प्रकार में कटारपुर और आराकी काली करतूतोंके लिए बेहिचक वहाँके प्रतिष्ठित हिन्दुओंको जिम्मेवार मानता हूँ, उसी प्रकार मुलतान, सहारनपुर और जिन दूसरी जगहोंमें काले कारनामे हुए, वहाँके प्रतिष्ठित मुसलमानोंको (किसी एक जगह सभीको नहीं) उनका जिम्मेदार मानने में मुझे कोई संकोच नहीं है। अगर यह बात सच है कि पलवलमें हिन्दुओंने कच्ची मसजिदकी जगह पक्की मसजिद नहीं बनने दिया तो यह काम गुंडोंका नहीं है। वास्तव में इसका उत्तरदायित्व प्रतिष्ठित हिन्दुओंपर ही है। प्रतिष्ठित लोगोंको दोषसे मुक्त कर देनेकी प्रवृत्तिको कदापि प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।

इसलिए मैं यह मानता हूँ कि अगर हिन्दू लोग अपनी हिफाजतके लिए गुंडोंको संगठित करेंगे तो यह बड़ी भारी भूल होगी। उनका यह आचरण खाईसे बचकर खन्दकमें गिरने-जैसा होगा। बनिये और ब्राह्मण अपनी रक्षा अहिंसात्मक तरीकेसे न कर सकते हों तो उन्हें हिंसात्मक तरीकेसे ही आत्मरक्षा करनी सीखनी चाहिए। अन्यथा उन्हें अपनी सम्पत्ति और बहू-बेटियोंको गुण्डोंके हाथों सौंप देना होगा। गुंडोंकी एक अलहदा जाति ही समझिए, भले ही वे हिन्दू कहलाते हों चाहे मुसलमान। लोगोंको बड़ी शानके साथ कहते सुना गया है कि अभी हालमें एक जगह अछूतोंकी हिफाजतमें (क्योंकि उन अछूतोंको मौतका भय नहीं था) हिन्दुओंका एक जुलूस मसजिदके सामनेसे (धूमधामके साथ गाते-बजाते हुए) निकल गया और उसका कुछ नहीं बिगड़ा।

यह एक पवित्र उद्देश्यसे करने योग्य कामका लौकिक दृष्टिसे किया गया उपयोग है। अछूत भाइयोंसे इस तरहका नाजायज फायदा उठाना न तो आमतौरपर पूरे हिन्दू धर्मके हितमें है और न खास तौरसे अछूतोंके। इस तरहके संदिग्ध उपायोंका सहारा लेकर भले ही कुछ-एक जुलूस कुछ मसजिदोंके सामनेसे सही-सलामत निकल जायें; पर इसका नतीजा यह होगा कि बढ़ता हुआ तनाव ज्यादा बढ़ेगा और उससे हिन्दू धर्मका पतन होगा। मध्यमवर्गीय लोगोंको, यदि वे विरोधके बावजूद मसजिदोंके सामनेसे बाजा बजाते निकलना चाहते हों तो, या तो वे पिटने के लिए तैयार रहें या अपने आत्मसम्मानकी रक्षा करते हुए मुसलमानोंको दोस्त बना लें।

हिन्दुओंने अपने दलित भाइयोंपर अतीतमें जो निर्योग्यताएँ लाद रखी थीं और आज भी जो निर्योग्यताएँ वे उनपर लादे हुए हैं, उनके लिए उन्हें प्रायश्चित्त करना है। स्थिति यह है कि हमपर उनका ऋण है और हमें उस ऋणको चुकाना है। ऐसी

 
  1. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४८५-८९।