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हिन्दू-मुस्लिम तनाव: कारण और उपचार

अली-बन्धु

ऐसी ही चेतावनी मुझे अली-बन्धुओंके बारेमें भी दी गई है। मौलाना शौकत अली बड़ेसे-बड़े बहादुरोंमें से हैं। उनमें कुर्बानीका बड़ा माद्दा है। उसी तरह उनमें ईश्वरकी सृष्टिके मामूलीसे-मामूली जीवको भी प्यार करनेकी असीम क्षमता है। वे खुद इस्लामपर फिदा है; पर दूसरे मजहबोंसे वे नफरत नहीं करते। मौलाना मुहम्मद अली अपने भाईके प्रतिरूप ही हैं। मौलाना मुहम्मद अलीमें मैंने बड़े भाईके प्रति जितनी अनन्य निष्ठा देखी है, उतनी कहीं नहीं देखी। वे पूरे सोच-विचारके बाद इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि हिन्दू-मुस्लिम एकताके सिवा भारतके उद्धारका रास्ता नहीं है। उनका “अखिल इस्लामवाद” हिन्दू-विरोधी नहीं है। इस्लामको बाहरी हमलोंसे बचानेके लिए और उनकी आन्तरिक शुद्धिके लिए सारा इस्लामी संसार एक हो जाये, यह उनकी उत्कट अभिलाषा है, ऐसी अभिलाषापर भला किसको आपत्ति हो सकती है? उनके कोकनाडाके भाषणके एक हिस्सेको आपत्तिजनक बताकर मुझे दिखाया गया। मैंने मौलाना साहबका ध्यान उस ओर दिलाया; उन्होंने उसी दम कबूल किया कि हाँ, वाकई यह भूल हुई। कुछ भाइयोंने मुझसे यह कहा है कि मौलाना शौकत अलीके खिलाफत सम्मेलन में दिये गये भाषणमें भी कुछ आपत्तिजनक बातें है। यह भाषण मेरे पास है परन्तु उसे पढ़ने का समय मुझे नहीं मिल पाया है। मैं यह जानता हूँ कि यदि उसमें सचमुच किसीका दिल दुखानेवाली कोई बात होगी तो मौलाना शौकत अली उसे उसी क्षण दुरुस्त करने को राजी हो जायेंगे। यह बात नहीं कि अली-बन्धुओंमें कोई दोष है ही नहीं। लेकिन मैं तो खुद भी दोषोंसे भरा हुआ हूँ। इसीलिए इन दोनोंको दोस्त बनाने और इसे अपनी एक बहुमूल्य निधि माननेमें मुझे कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। अगर उनमें कुछ दोष हैं तो गुण भी बहुत हैं और मेरा उनके प्रति स्नेहभाव है। जिस प्रकार ऊपर बताये हिन्दू मित्रोंका परित्याग करके मैं हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए हिन्दुओंके बीच कोई पुख्ता काम नहीं कर सकता, उसी प्रकार मैं उक्त मुसलमान दोस्तोंके बिना एकताके लिए मुसलमानोंके बीच भी कोई काम करने की आशा नहीं रख सकता। यदि हममें से लोग पूर्णताको पहुँचे हुए होते तो हमारे बीच झगड़े होते ही क्यों? पर चूंकि बहुतेरे हम सब अपूर्ण प्राणी हैं, इसीसे हम सबको एक-दूसरेकी अनुकूल बातें खोजकर और ईश्वरपर भरोसा रखकर एक सामान्य ध्येयके लिए काम करते जाना चाहिए।

हमारे कुछ श्रेष्ठ व्यक्तियोंके प्रति भी अविश्वासका जो वातावरण बन गया उसीको दूर करनेके खयालसे मुझे कतिपय चुने हुए लोगोंके बारेमें लिखना पड़ा है। मुमकिन है कि मैं पाठकोंको इन व्यक्तियोंके सम्बन्धमें अपनी रायका कायल न कर पाया होऊँ तथापि जरूरी था कि वे मेरी रायसे अवगत हो जाते; भले ही उनकी राय मुझसे भिन्न हो।

सिन्धका वाकया

इस गहरे अविश्वासके कारण किसी मामले के बारेमें सचाई जान सकना भी असम्भव-सा हो गया है।